आजकल ‘घर वापसी’ का जुमला बहुत आक्रामक ढंग से उछाला जा रहा है। इससे सांप्रदायिक सद्भाव के तहस-नहस होने की आशंका है। यही रोड मैप है घर वापसी के माध्यम से आज के शासक दल के आका संघ परिवार का। सौ साल पहले इससे एकदम उलट मंशा और उद्देश्यों के लिए भी एक ‘घर वापसी’ हुई थी।
अन्याय के खिलाफ प्रतिकार का सबक सिखाने वाले गांधी आज से सौ साल पहले दक्षिण अफ्रीका से भारत आए थे। इसे भी उनकी घर वापसी कह सकते हैं। लेकिन गांधी की वह घर वापसी थी नैतिक बल के माध्यम से प्रतिकार करने, सत्य के प्रयोग करके, उपभोगवादी सभ्यता के बरक्स केवल अपनी जरूरत से ज्यादा के लोभ से मुक्ति के विचार को प्रयोग करके स्थापित करने के लिए। गुलामी के तले दबे-कुचले गए देशवासियों का स्वाभिमान जगाने के लिए, बुनियादी तालीम के जरिए काम और शिक्षा या कहें कि शिक्षा, काम और जिंदगी को साथ-साथ जीकर आत्मनिर्भर बनाने की शिक्षा प्रणाली स्थापित करने के लिए, जीवन की शिक्षा और जीवन के द्वारा शिक्षा विकसित करने के लिए, ग्राम स्वराज के जरिए प्रतिनिधि-लोकतंत्र के स्थान पर प्रत्यक्ष लोकतंत्र की स्थापना के लिए।
वह घर वापसी थी ऊंच-नीच का जातिगत भेदभाव खत्म करने के लिए, दीन-दुखियों की सेवा करते-करते सेवा का पाठ पढ़ाने के लिए, ईश्वर अल्ला तेरो नाम सबको सन्मति दे भगवान, वैष्णव जन तो तेने कहिए जे पीर पराई जाणे रे का संदेष फैलाने के लिए, अंंगरेजी राज की दासता से देश को आजाद बनाने के लिए। सच्चा, सदाचारी, नैतिक, अहिंसक, समतामूलक, विनम्र, परोपकारी आत्मनिर्भर समाज की रचना करने के लिए। कितना अंतर है दो अलग-अलग उद्देश्यों से की जाने वाली घर वापसी में!
श्याम बोहर, बावड़ियाकलां, भोपाल
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