पिछले कुछ दिनों से पेट्रोल, डीजल और गैस के दाम इस कदर बढ़ते जा रहे हैं कि आम आदमी का जीवन परेशानियों से घिर गया है। सवाल है कि दाम चुनाव खत्म होने के बाद ही क्यों बढ़ने लगे। हमें यह गणित समझना होगा कि क्या चुनाव आने के साथ ही जनता के लिए सेवा की भावना उत्पन्न होती है और चुनाव जाने के बाद जनता से लूट की भावना जागृत हो जाती है।
आखिर कब तक इस तरह के लालीपाप देकर सरकार अपना काम निकलवाती रहेगी। महंगाई अपने चरम पर पहुंच चुकी है और देश का युवा हिंदू-मुसलिम में लगा हुआ है। आखिर कब जागेंगे देश के युवा और कब इस मुद्दे पर बात करने के लिए वे सरकार को विवश करेंगे। एक तरफ विपक्ष, जो नाममात्र रह गया और दूसरी तरफ जनता, जो हिंदू-मुसलिम में खो गई।
प्रवीन कुमार बसाक, लखीसराय
अपराधी पर नजर
भारत के लोग शांति, सुरक्षा, सुशासन और अच्छी कानून-व्यवस्था चाहते हैं। भयमुक्त समाज तभी संभव है, जब अपराधियों को उनके अपराधों की सजा मिले। मगर देश में अपराधियों को सजा मिलने की दर आधे से भी कम है। इसका कारण गवाहों का मुकर जाना, पीड़ित से समझौता, अपराधी की पहचान आदि न हो पाने से दोष सिद्ध कम हो पाना है। अब अपराध प्रक्रिया पहचान विधेयक 2022 पारित होने के बाद से अपराधियों की फोटो, हाथ और पैरों की अंगुलियों की छाप, खून, बाल, लार आदि तमाम प्रकार के जैविक नमूने लेने के लिए पुलिस को किसी से अनुमति नहीं लेनी पड़ेगी। इस पूरे डाटा का डिजिटलीकरण करके केंद्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के डाटाबेस में जमा किया जाएगा।
दुनिया के विकसित देशों में दोष सिद्धि की दर अस्सी प्रतिशत से अधिक है। देश के प्रतिष्ठित सुरक्षा अधिकारियों के अनुसार इससे आपराधिक मामलों की जांच में क्रांति आएगी। अपराधी पहचान बदल कर देश में कहीं पर भी दूसरा अपराध करेंगे तो उसे पिछले अपराध से जोड़ना आसान हो जाएगा। बायोमेट्रिक डाटा से पहचान बदल कर भागने वाले अपराधियों को आसानी से पकड़ा जा सकेगा। इस तरह के कानून विदेशों में वर्षों से लागू हैं। हमें अपराधमुक्त और भयमुक्त समाज बनाने के लिए इस कानून का स्वागत करना चाहिए।
कुलदीप मोहन त्रिवेदी, उन्नाव
कांग्रेस की दशा
आज कांग्रेस जैसी पुरानी पार्टी की जो हालत हो रही है वह वाकई गौर करने लायक है। न आलाकमान कुछ सर्वमान्य फैसले लेने को आगे आ रहा है न ही पार्टी के चुनाव हो पा रहे हैं। ऐसे में कार्यकर्ताओं का पार्टी से मोहभंग होना स्वाभाविक है। चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर का फार्मूला गले उतारने के साथ ही पार्टी संगठन को नए सिरे से गठित करना होगा।
इसके अलावा जी-23 समूह के असंतुष्ट नेताओं की मान-मनौव्वल भी जरूरी है, क्योंकि उनमें कई वजूद वाले नेता हैं, जो पार्टी के चुनावों के समय नैया पार लगा सकते हैं। कांग्रेस को एक बड़ा नुकसान बिना वजह सार्वजनिक टिप्पणी करने वाले नेताओं से भी होता है, जिससे रातोरात पासे पलट जाते हैं। अपने बेतुके सवाल जवाब से पार्टी को नुकसान पहुंचाने वाले मुंहफट नेताओं को भी संयम सिखाना होगा।
कांग्रेस की हालत सुधरने में वक्त लगेगा, लेकिन इसकी शुरुआत अभी से करनी होगी। जब तक पार्टी अपने लोकतंत्र पर नहीं लौटेगी, अनुशासन कायम नहीं होगा और वह जनविश्वास पर खरी नहीं उतर पाएगी।
अमृतलाल मारू ‘रवि’, धार, मप्र