फिरौती न मिलने पर पालघर में भारतीय नौ सेना के जवान को जिंदा जला दिया गया। उसे चेन्नई से अगवा किया गया था, फिर नौसेना जवान सूरज कुमार दुबे के परिवार से दस लाख रुपए फिरौती की मांग की गई थी। फिरौती की मांग पूरी नहीं करने पर उसे पालघर के जंगलों में जिंदा जला दिया गया।

क्या एक नौसैनिक को मारना इतना आसान है? क्या देश के जवानों के प्रति भी पालघर में आस्था नहीं बची? इस घटना से यह तो साफ है कि पालघर असामाजिक तत्वों का केंद्र बन चुका है? जहां देवभक्ति से लेकर देशभक्ति तक सबको मिटाने का षड्यंत्र किया जा रहा है। देश की जनता इस पाप कर्म से आहत है। पालघर को पाप घर बनने से रोकने के लिए कठोर कदम उठाने चाहिए, बजाय राजनीति करने के।
’मंगलेश सोनी, धार (मप्र)

म्यांमा का संकट

हमारे पड़ोसी देश म्यांमा में सैन्य उठापटक से परेशानियां बढ़ गई हैं। एक तरफ भारत को अपने सुरक्षा के हितों का ध्यान रखना है और दूसरी तरफ लोकतंत्र का समर्थन भी करना है। म्यांमा ने लंबे समय तक सैन्य शासन की मार झेली है। पिछले साल नवंबर में हुए चुनाव में सत्ताधारी नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी (एनएलडी) पर धांधली के आरोप लगे थे। हालांकि सेना देश में सैन्य तख्तापलट की आशंकाओं को खारिज करती रही थी।

लेकिन कुछ पश्चिमी राजदूतों ने म्यांमा में तख्तापलट की आशंका जताई थी। दरअसल संसद सत्र शुरू होने से पहले ही सेना ने चेतावनी दे दी थी कि चुनाव के दौरान हुई धांधलियों पर सरकार ने अगर कोई कार्रवाई नहीं की गई तो वह कड़ा कदम उठा सकती है। वैसे सैन्य शासन म्यांमा के लिए कोई नई बात नहीं है। हाल के तख्तापलट से एक बार इस पड़ोसी देश पर पूरी दुनिया का ध्यान गया है। म्यांमा में सेना ने लोकतांत्रिक तरीके से नेता चुनी गई स्टेट काउंसलर आंग सान सू की और राष्ट्रपति को नजरबंद कर दिया है और सत्ता अपने हाथ में ले ली है।

अमेरिका, भारत सहित दुनिया भर के देशों ने म्यांमा में लोकतांत्र को कुचले जाने पर चिंता जाहिर की है। लेकिन चीन ने जिस तरह की ठंडी प्रतिक्रिया दी है, उससे यह भी सवाल उठ रहा है कि क्या म्यांमा में जो कुछ हो रहा है, उसके पीछे चीन का हाथ है? साथ ही बड़ा सवाल यह भी उठता है कि ताजा घटनाक्रम का भारत पर क्या असर पड़ेगा? चीन ने पिछले कुछ सालों में म्यांमा में बड़ा निवेश किया है।

उसने वहां ढांचागत क्षेत्र, खनन और गैस पाइपलाइन परियोजना में अरबों डालर का निवेश किया है। बावजूद इसके वह वहां के हालात बहुत शांत और खुद को अनजान बताने की कोशिश कर रहा है। चीन का रुख बता रहा है कि उसकी सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी अधिनायकवादी शासकों का समर्थन करती है। म्यांमा में जो कुछ हुआ, वह भारत के लिए ठीक नहीं है।

म्यांमा की सीमाएं न केवल भारत से जुड़ी हुई हैं बल्कि चीन से भी सटी हुई हैं। ऐसे में म्यांमा में होने वाली गतिविधियों का असर भारत और चीन पर पड़ना स्वाभाविक है। उत्तर पूर्व के कई अलगाववादी संगठन म्यांमा की जमीन से ही भारत विरोधी गतिविधियों को संचालित करते रहे हैं। कुछ मौकों पर भारत ने म्यांमा के अंदर घुस कर इनके खिलाफ सैन्य कार्रवाई भी की है।

यह भी जाहिर है कि चीन इन संगठनों की मदद करता आया है। म्यांमा की सेना और चीनी सेना के बीच अच्छे संबंध रहे हैं। ऐसे में चीन के हाथों में खेलने वाला म्यामांर भारत के लिए चुनौती बढ़ाने वाला है।
’रूबी सिंह, गोरखपुर