कोरोना काल में गरीबों और मध्यवर्ग पर किस कदर मार पड़ी है, यह सब देखा है। अब महंगाई लोगों को रुला रही है। एक ही महीने में दो बार रसोई गैस के दाम बढ़ने से आम आदमी की जेब कितना बुरा असर पड़ेगा, शायद सरकार ने यह सोचा ही नहीं।
पेट्रोल और डीजल के दाम तो जिस तेजी से बढ़ रहे हैं, उसने भी महंगाई बढ़ाने में आग में घी का काम किया है। आम आदमी के जीवन पर इन सबका असर दिखना शुरू हो गया है। ईधन के दाम बढ़ते ही परिवहन सहित हर चीज के दाम बढ़ जाते हैं। करोड़ों लोग इस वक्त बिना रोजगार के हैं। ऐसे में महंगाई का बोझ लोग कैसे बर्दाश्त कर पाएंगे?
’अनिमा कुमारी, पटना</p>
शिक्षा पर निवेश
संपादकीय पृष्ठ पर “शिक्षा का अर्थशास्त्र” लेख पढ़ा, जो बजट में शिक्षा के लिए किए गए आवंटन के विषय में था। कुल मिलाकर इस वर्ष के बजट में पिछले साल की तुलना में शिक्षा के लिए कम बजट का प्रावधान किया गया है। यह तब हो रहा है जब 2020 में नई शिक्षा नीति आई है, जो कौशल विकास, सभी के लिए शिक्षा और समावेशी शिक्षा पर बल देती है।
किंतु इन सभी के लिए बजट जरूरी है। बिना बजट के इन लक्ष्यों को हासिल करने के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता। नई शिक्षा नीति के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए इसमें सबसे अधिक निवेश की जरूरत है। शिक्षा ऐसा क्षेत्र है जो मानव पूंजी को सामाजिक पूंजी में परिवर्तित कर उसे बढ़ावा देता है। किंतु भारत में शिक्षा की गुणवत्ता कैसी है, यह जगजाहिर है।
आज हमारे देश में सबसे अधिक आबादी युवाओं की है जो देश के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। लेकिन यह तब होगा जब हम इन्हें मानव पूंजी बनाएंगे, वरना ये भीड़ और बढ़ती ही जाएगी और भीड़ का कोई भविष्य नहीं होता।
नौजवानों की इस आबादी को सही दिशा में लगाना जरूरी है और इसके लिए नई शिक्षा नीति महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। कौशल युक्त शिक्षा के लिए अधिक बजट की आवश्यकता हैं। आज आत्मनिर्भर भारत की बातें तो जोरशोर से हो रही हैं, लेकिन इसके लिए ज्ञान, कौशल और निपुणता चाहिए और इन सबके लिए बजट।
’आशीष रमेश राठोड़, पारडी चंद्रपुर (महाराष्ट्र)