पिछले महीने की पच्चीस तारीख को गुजरात के अमदाबाद में आयशा नाम की लड़की की आत्महत्या हमारे समाज, सरकार और शिक्षा व्यवस्था पर जोरदार तमाचा है। यह घटना बता रही है कि भारत में हमें महिलाओं की स्थिति सुधारने के लिए अभी लंबा सफर तय करना है। यह एक अलग बात है कि हम आधुनिक होने की बात का अक्सर राग अलापते रहते हैं जो अपने आप में एक ढोंग है।

इसके अलावा मानवाधिकार दिवस मनाना, हर साल आठ मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाना, राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाना, महिलाओं को देवी मानना, इन खास दिवसों पर पुलिस थानों के द्वारा महिला पुलिस की चमचमाती पिंक स्कूटी की रैली निकालना और संग्रहालयों, मॉल इत्यादि स्थानों पर महिलाओं को मुफ्त में प्रवेश देना, इस दिन रेलवे द्वारा किसी ट्रेन का परिचालन पूरे महिला स्टाफ द्वारा करना, सोशल मीडिया खूब महिला सशक्तिकरण की बातें करना, निजी कंपनियों द्वारा इस दिन महिलाओं को अवकाश देने जैसे कदमों को ऐसे दिखाया जाता जैसे महिलाओं पर कोई एहसान किया जा रहा हो।

जबकि हकीकत यह है कि यदि महिला अपने श्रम का हिसाब मांगे तो यह मानव सभ्यता की सबसे बड़ी और पुरानी चोरी होगी। इसलिए हमें विचार करना होगा कि महिला सुरक्षा या सशक्तिकरण की बातें केवल किसी एक दिन तक सिमट कर नहीं रह जानी चाहिए।

आयशा के आत्महत्या के पीछे जो मुख्य कारण बताया जा रहा है, वह दहेज प्रताड़ना है। इससे यह बात साबित होती है कि दहेज जैसी कुप्रथा हर समुदाय में मौजूद है जो न जाने कितने जीवन तहस-नहस करने में लगी है। भारत में न जाने ऐसी कितनी आयशा दहेज प्रताड़ना का का दर्द झेल रही हैं या इसके चलते उन्होंने अपना जीवन खत्म कर लिया। इसलिए वक्त आ गया है कि अब हमारी सरकारों को, हमारे समाज को बहुत ही गंभीरता से विचार करना होगा कि आजादी के इतने सालों के बाद भी हम भारतीय समाज से ऐसी घटनाओं को रोकने में कहां असफल हो रहे हैं।
’सौरव बुंदेला, भोपाल</p>

चुनौती बनती आबादी

लांसेट रिपोर्ट की मानें तो विश्व की जनसंख्या इक्कीसवीं सदी के अंत तक संयुक्त राष्ट्र के पूर्व के अनुमान 11.9 अरब के मुकाबले घट कर 8.8 अरब रह जाएगी। रिपोर्ट में कहा गया है कि विश्व के अधिकतर देशों की आबादी घटेगी, जिनमें भारत भी शामिल है। फिर भी भारत विश्व की सबसे बड़ी आबादी वाला देश बना रहेगा। भारत की आबादी घट कर लगभग 1.9 अरब रह जाने का अनुमान है। विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसा प्रजनन दर में गिरावट के कारण होगा।

भारत में कुछ राज्यों (विशेषकर हिंदी पट्टी के राज्य और असम) को छोड़ दें तो अधिकतर राज्यों में प्रजनन दर 2.1 से नीचे चली गई है। यह पर्यावरणीय दृष्टि से शुभ संकेत है, इससे कार्बन फुटप्रिंट में कमी आएगी। लेकिन आर्थिक व सामाजिक दृष्टि से चिंता का विषय भी हो सकता है। लांसेट का कहना है कि भारत की आबादी 2047 तक स्थिर हो जाएगी और 2061 से आबादी घटनी शुरू होगी। वही आश्रित जनसंख्या में वृद्धि होगी, जिससे सामाजिक व्यवस्था और अर्थव्यवस्था दोनों प्रभावित होंगे।

भारत में जनसंख्या वृद्धि को एक समस्या के रूप में देखा जा रहा है। हमारे प्रधानमंत्री जी भी इसे जाहिर कर चुके हैं, जिसके कारण जनसंख्या नियंत्रण नीति की चर्चा जोरों से चल रही है। लेकिन हमें जनसंख्या नियंत्रण के बजाय जनसंख्या प्रबंधन पर काम करने की आवश्यकता है। पूरे देश में एक जैसी नीति लागू करने के बजाय जनसंख्या हॉटस्पॉट चिह्नित कर उन्हें कम करने की आवश्यकता है, ताकि आने वाले समय जनसंख्या परिवर्तन से होने वाली समस्याओं से निपटा जा सके।
’अनूप सिंह कुशवाहा, इलाहाबाद विवि, प्रयागराज