हाल ही में उत्तर प्रदेश में एक मंदिर परिसर में एक शख्स के द्वारा एक मासूम बच्चे की पिटाई सिर्फ इसलिए कर दी गई कि वह प्यासा था और पानी की तलाश में मंदिर परिसर में प्रवेश कर गया था। धर्म के नाम पर चल रहे पाखंड ने धार्मिक स्थलों को अपनी जागीर समझ रखा है। मंदिर किसी एक व्यक्ति की निजी संपत्ति नहीं है, बल्कि यह समाज के सभी वर्गों के लिए एक समान महत्त्व वाला पूजा-स्थल है। लेकिन अफसोसनाक है कि कभी जाति के नाम पर भेद-भाव किया जाता है तो कभी लिंग भेद के आधार पर। गैर धर्म के लोगों को तो नफरत की निगाह से ही देखा जाने लगा है।

कौन मजहब यह सिखाता है? बच्चों को भगवान का दूसरा रूप माना जाता है और बच्चों पर इस तरह का किया गया जुल्म किसी भी तरह से क्षमा योग्य नहीं है। उस बच्चे पर सिर्फ शारीरिक जुल्म नहीं हुआ, बल्कि उसे मानसिक रूप से प्रताड़ित भी किया गया, क्योंकि उसके निर्मल मन में कभी न मिटने वाली चोट लगी है।

भारत का संविधान सभी नागरिकों को एक समान अधिकार प्रदान करता है। फिर भी ऐसी घटनाएं हमारे आसपास घटित हो रही हैं। प्रशासन और सरकार को ऐसी घटनाओं को संज्ञान में लेकर इस तरह का कुकृत्य करने वालों के ऊपर कठोर कार्रवाई करनी चाहिए थी, जिससे भविष्य में ऐसी घटनाएं फिर से घटित न हो सके। सरकार को चाहिए कि सभी जगह के धार्मिक स्थलों की सूचना एकत्रित कर तथा उसका पंजीकरण कर जिलाधिकारी के माध्यम से स्थानीय प्रशासन के अंतर्गत सूचीबद्ध कर दिया जाए, जिससे धार्मिक स्थलों के साथ-साथ वहां पर रहने वालों की सूचना स्थानीय प्रशासन के पास उपलब्ध हो और था आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों को वहां शरण न मिल सके।
’राकेश कुशवाहा ‘ऋषि’, नई दिल्ली

बोझ की सत्ता

‘दिल्ली की कमान’ (संपादकीय, 16 मार्च) पढ़ा। जब से दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार बनी है, तभी से दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच विवाद बना हुआ है। किसी छोटे निर्णय से लेकर बड़े फैसलों तक में उपराज्यपाल का हस्तक्षेप देखा जाता रहा है। बार-बार की दखलंदाजी की वजह से दोनों का विवाद सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया था। जुलाई 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया कि उपराज्यपाल सिर्फ भूमि, कानून-व्यवस्था और पुलिस से जुड़े मामले में निर्णय ले सकते हैं।

लेकिन सुप्रीम कोर्ट के निर्णय की अवहेलना करके दिल्ल में नई सरकार का गठन करने की बातें करते हैं। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने संसद में एक विधेयक पेश किया है, जो उपराज्यपाल को अधिक शक्ति प्रदान करता है। अगर यह विधेयक पास हो गया, तो दिल्ली सरकार के पास किसी भी विभाग में निर्णय लेने का अधिकार ही नहीं रह जाएगा।

अगर केंद्र सरकार सभी शक्तियां उपराज्यपाल को सौंपना चाहती है, तो दिल्ली विधानसभा का औचित्य क्या है? क्या दिल्ली विधानसभा को समाप्त कर देना चाहिए? भाजपा सरकार सत्ता के नशे में चूर हो गई है और वह दिल्ली में विपक्षी पार्टी की सरकार को बर्दाश्त नहीं कर पा रही है। अरविंद केजरीवाल को दिल्ली की जनता ने दुबारा मुख्यमंत्री के रूप में चुना है, उनकी सरकार को जनता की उम्मीदों पर खरा उतरने के लिए अधिकार होने चाहिए। केंद्र सरकार और उपराज्यपाल को अपनी संवैधानिक सीमा में रहना चाहिए।
’हिमांशु शेखर, केसपा, गया, बिहार</p>