भारत का नजरिया हमेशा शांति, मैत्री, सहयोग का रहा है। एक जानकारी के मुताबिक मानवीय मदद के तहत भारत की तरफ से युद्धग्रस्त अफगानिस्तान को कोरोनारोधी टीके की पांच लाख खुराक प्रदान की। इसके अलावा पचास हजार टन गेहूं और जीवन रक्षक दवाओं की आपूर्ति करने का आगामी दिनों में लक्ष्य रखा है। तालिबान के अच्छा रवैया न अपनाने के कारण अफगानिस्तान के नागरिक संकट में हैं।

भारत ने अफगानिस्तान की तालिबान सरकार को मान्यता नहीं दी है। उसकी शर्त है कि अफगानिस्तान की धरती का इस्तेमाल आतंकी गतिविधियों को पनाह देने के लिए न हो। तालिबान सरकार के अफगानिस्तान के लोगों के प्रति किए जा रहे भेदभाव और परेशान करने के रवैए को अंतरराष्ट्रीय स्तर की बैठक में सभी देशों ने इस प्रकार के रवैए पर अंकुश लगाने का मुद्दा उठाया जाना चाहिए। अन्य देशों को भी भारत की तरह सहायता देने हेतु आगे आना चाहिए। मानवीय मदद का महत्त्व संकट के समय ही होता है।

  • संजय वर्मा ‘दृष्टि’, मनावर, धार

सुधार की दरकार

पुलिस प्रणाली में सुधार की मांग समय-समय पर उठती रहती है। इसके लिए कई आयोग बनाए गए, मगर उनकी रिपोर्टें ठंडे बस्ते में डाल दी गर्इं। उन रिपोर्टों को राष्ट्रीय स्तर पर लागू किया जाना चाहिए। पुलिस सुधार के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति बेहद आवश्यक है। प्राय: सभी सरकारें पुलिस को अपने राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल करती हैं। व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार सुधार की दिशा में सबसे बड़ी रुकावट है।

नौकरी पाने से लेकर पदस्थापना और छुट्टी तक के मामलों में रिश्वत की शिकायतें सुनने को मिलती रहती हैं। पुलिसकर्मियों को सुविधाओं का बेहद अभाव है। पुलिस अधिकारियों की जिम्मेदारी तय होनी चाहिए। कई बार निर्दोष व्यक्ति भी सलाखों के पीछे चले जाते हैं। पुलिस कर्मियों के लिए एक दिन में अधिकतम आठ घंटे की सेवा और उनके कार्यकाल की अवधि निर्धारित होनी चाहिए। पुलिस प्रशिक्षण में आधुनिकीकरण और मानवीय संवेदनाओं को शामिल करने की आवश्यकता है।

  • हिमांशु शेखर, केसपा, गया

परदे पर सवाल

प्रधानमंत्री की पंजाब यात्रा पर हुई उनकी सुरक्षा में बड़ी चूक पर जांच के लिए अंतत: माननीय सुप्रीम कोर्ट को ही एक समिति गठित करनी पड़ी है, जो सभी के लिए संतोषजनक है। अब जनता को पूरी आशा है कि इसमें बहुत जल्द ही दूध का दूध और पानी का पानी होगा। मगर कुछ लोगों का यह मानना है कि इसकी जांच का परिणाम शायद सार्वजनिक न हो।

अगर ऐसा होता है तो फिर यह और भी अधिक संदिग्ध होगा, जो शायद किसी के लिए भी उचित नहीं है, क्योंकि इसका कोई ठोस आधार भी दिखाई नहीं देता और दूसरी ओर, पूरा देश इसकी सच्चाई जानने को बेताब है। इसके अलावा इस परिणाम के सार्वजनिक न होने से जनता को यह भी मालूम नहीं हो सकेगा, इस चूक में किसका कितना दोष था और यह चूक क्यों और कैसे हुई, ताकि आगे से ऐसी चूक न हो और इसे सुधारा भी जा सके। इसलिए यह सर्वहित में बहुत जरूरी है। अगर फिर भी दुर्भाग्य से ऐसा होता है तो जनता एक तरह से अंधेरे में ही होगी, जो स्वस्थ लोकतंत्र में उचित नहीं कहा जा सकता। सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण यह है कि अब यह जांच कब तक पूरी होती है।

  • वेद मामूरपुर, नरेला