बाकी समय में उनके पास न तो जनता की सुध लेने का लिए समय होता है और न अपने चुनावी-घोषणा पत्रों की कोई फिक्र होती है। नौकरियों की कमी, काम धंधों का पिट जाना और इन सबके चलते आर्थिक असमानता की चौड़ी होती खाई ने गरीब को गरीब ही बना कर रख रखा है। अमीर दिन-प्रतिदिन और अमीर होते जा रहे हैं, जिसकी वजह से हर बरस देश के अमीरों की सूची और आय में आश्चर्यजनक उछाल आता जा रहा है। गरीब, गरीब ही बना हुआ है उसकी जीवन शैली मे कोई बदलाव की उम्मीद नहीं नजर आती है।
कम आय पाने वाला जब अधिक आय पाने वाले से अपने जीवन स्तर की तुलना करता है तो आर्थिक असमानता का दर्द उसे कचोटता है। अनेक बार योग्यता-कुशलता के होते हुए भी उपयुक्त रोजगार नहीं मिलने पर लोगों को आर्थिक असमानता का शिकार होना पड़ रहा है। बढ़ती हुई आर्थिक असमानता से गरीब का महंगाई के दौर मे दो वक्त का घर चलाना मुश्किल हो रहा है और उनमें घोर निराशा और अवसाद उत्पन्न हो रहे हैं। इन परिस्थितियों के चलते, समाज में आर्थिक अपराधों और हिंसात्मक गतिविधियों में अचानक वृद्धि देखी जा रही है।
नरेश कानूनगो, देवास, मप्र
दवा का जोखिम
घातक, घटिया और नकली दवाओं पर नकेल जरूरी है। गौरतलब है कि 2020 में हिमाचल प्रदेश में निर्मित दवा से जम्मू-कश्मीर में बारह बच्चों की मौत हुई थी और हाल ही में हरियाणा की कंपनी के कफ सिरप से पश्चिम अफ्रीका के छियासठ बच्चों की जान चली गई। संपादकीय ‘दवा या जहर’ (8 अक्तूबर) में उल्लेख है कि जांच में कंपनी के चार कफ सिरप को डब्लूएचओ प्रतिबंधित कर वैश्विक चेतावनी जारी कर दिया।
दरअसल, तीन सौ फार्मा कंपनी और 11,000 उत्पादन यूनिट चलने से दवा के वैश्विक बाजार में एक तिहाई भारत की हिस्सेदारी होने के बावजूद अगर इतनी बड़ी खामी पाई जाती है तो यह दुर्भाग्यपूर्ण है। इसके प्रति किसी को तो जिम्मेदार ठहराना ही होगा।भारतीय ही नहीं, कोई भी कंपनी दवाओं को जहर नहीं बना सकती, लेकिन लापरवाही या फिर बेईमानी से दवा ही जहर बन जाती है।
भारतीय कफ सिरप के चार नमूने नाकाम और प्रतिबंधित होने से भारतीय फार्मा उद्योग की काफी बदनामी हुई है। इसलिए बिक्री और डाक्टर की सलाह से पूर्व दवाइयों के रसायन का चिकित्सीय परीक्षण केंद्र और राज्य स्तर पर हो, ताकि घातक दवाएं बाजार में न आ सके।
बीएल शर्मा ‘किंचन’, तराना, उज्जैन