हमारे यहां हिंदू सनातन संस्कृति में अंतिम संस्कार का रिवाज है। किसी व्यक्ति के निधन के बाद लकड़ियों की चिता बना कर सम्मान सहित उसे अग्नि दी जाती जाती है और सनातन संस्कृति में ऐसी मान्यता है कि जिस व्यक्ति का अंतिम संस्कार नहीं होता, उसे मोक्ष प्राप्ति नहीं होती और उसकी आत्मा भटकती रहती है। धर्मात्मा, पुण्यात्मा, ढोंगी, पापी, आरोपी, अपराधी, दोषी सबको अंतिम संस्कार का सार्वभौमिक मानवीय अधिकार प्राप्त है। किसी को उसके अंतिम संस्कार से वंचित करना महापाप है।

हाल में हाथरस की एक दलित ‘गुड़िया’ के साथ बर्बर अपराध हुआ, फिर बाद में उसकी जीभ काट दी जाती है ताकि सच्चाई हमेशा-हमेशा के लिए दफन हो जाए। चौदह-पंद्रह दिनों तक जिदंगी से जूझते-जूझते वह हार गई। आनन-फानन में सरकार प्रशासन की सहायता से उसकी लाश को जला दिया गया। उत्तर प्रदेश में सरकार राजनीतिक मंचों से रामराज्य की बात करती है।

हिंदुत्व के रथ पर सवार होकर भाजपा सत्ता के सिंहासन तक पहुंची है। ऐसे में सबसे बडा़ सवाल यही है कि क्या हाथरस की दलित बेटी हिंदू नहीं थी? और अगर वह हिंदू थी तो फिर उसे उसके अंतिम संस्कार से वंचित क्यों किया गया? हाथरस में आधी रात को एक लड़की की जलती चिता दरअसल हमारी मृत व्यवस्था का अंतिम संस्कार था।

अगर सरकार के हिंदुत्ववादी एजेंडे में दलित और महिलाएं भी शामिल होती तो आज अपराधियों को बचाने के लिए सरकार को पीड़ित दलित परिवार के पीछे पूरे प्रशासनिक तंत्र लगा कर अपराध पर पर्दा डालने को मजबूर नहीं होना पड़ता। सवाल यह नहीं है कि वह हिंदू थी, या दलित थी या किसी अन्य जाति या संप्रदाय की, बड़ा प्रश्न यह है कि बहन-बेटियों की इज्जत से आखिर कब तक खिलवाड़ होता रहेगा और सारे दल व सरकारें अपनी राजनीतिक रोटियां सेकते रहेंगे? ’कुंदन कुमार, बीएचयू वाराणसी</p>