प्रकृति हमारी जरूरतों को पूरा कर सकती है, हमारे लालच को नहीं। यह वाक्य आज से कई दशकों पहले गांधीजी ने बोला था। शायद वे जानते थे कि आने वाली पीढ़ियां प्रकृति का दोहन क्रूर तरीके से करेंगी और आज यही बात मध्य प्रदेश के संदर्भ में एकदम सटीक बैठती है, जहां राज्य सरकार ने हीरा उत्पादन के लिए छतरपुर जिले के बक्सवाहा जंगल को काटने की अनुमति दे दी है।

अगर अलग-अलग रिपोर्टों की मानें तो बताया जा रहा है कि इस फैसले के बाद यहां कुछ भयानक नुकसान होंगे। जैसे दो लाख से भी अधिक पेड़ काटे जाने की संभावना है, जिसके बाद प्राप्त होने वाली आॅक्सीजन की मात्रा तो प्रभावित होगी ही, साथ में इसके अतिरिक्त पौधों की कई प्रजातियां नष्ट हो जाएंगी और इसके अलावा यहां रह रहे जीव-जंतुओं का जीवन का अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा। और वहीं रह रहे आदिवासियों का जीवन भी गंभीर खतरे की ओर बढ़ जाएगा। वहां अवस्थित पन्ना टाइगर रिजर्व भी इस भयानक बर्बादी की जद में आएगा। इसके अलावा, पारिस्थितिकी तंत्र पर भी बहुत ज्यादा नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।

हमें ज्ञात होना चाहिए कि बुंदेलखंड का इलाका सूखा से प्रभावित इलाका है और हीरा उत्पादन के लिए पानी की अधिक आवश्यकता होती है, जिसके चलते यहां के लोगों और जीव-जंतुओं को पानी की किल्लत का सामना करना पड़ सकता है। इस परियोजना को ‘बंदर प्रोजेक्ट’ कहा जा रहा है, क्योंकि वहां बंदर भारी तादाद में पाए जाते हैं। इस फैसले के बाद सरकार की मंशा पर सवालिया निशान लगता है कि उसके लिए क्या महत्त्वपूर्ण है! और भी कई सवालों का जन्म होता है जैसे राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण और पर्यावरण मंत्रालय के क्या मायने हैं, जो मूकदर्शक होकर इतनी बड़ी बर्बादी को रोकने में असमर्थ हैं। दूसरा सवाल पर्यावरण संरक्षण के लिए बने इतने विधि-विधान का क्या अर्थ? पर्यावरण के नाम पर वर्ष भर होने वाले आयोजनों का ढोंग क्यों?

प्राकृतिक संसाधनों पर केवल सरकारों का अधिकार नहीं होता है। इसको बनाने और उसका संरक्षण करने वाले प्रत्येक जीव का समान रूप से अधिकार होता है। सरकार का तर्क है कि वह इससे कहीं ज्यादा पेड़ लगाएगी। सवाल है कि क्या सरकार ऐसा पारिस्थितिकी तंत्र पैदा कर पाएगी जो वर्तमान में है? फिर जनता से इसको कितना लाभ होगा? शायद न के बराबर। इससे फायदा केवल राजनीतिक गठजोड़ और कॉरपोरेट घरानों को होने वाला है। एक सवाल यह है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर क्या प्रभाव पड़ेगा, खास तौर पर सूचकांकों में सतत् विकास लक्ष्य को कैसे हासिल करेंगे!

इस आपदा को रोकने के लिए देश का विपक्ष कहां है? क्या विपक्ष की भूमिका केवल चुनाव तक ही सीमित है? इसलिए जरूरत है कि अब इस तबाही को रोकने के लिए गैर-सरकारी संगठन, मीडिया संस्थान, सुप्रीम कोर्ट इस मामले को गंभीरता से लें और सबसे महत्त्वपूर्ण यह है कि आमजन संगठित हों। यह मामला किसी धर्म या व्यक्ति विशेष से नहीं जुड़ा है। यह आने वाली पीढ़ियों को बचाने के लिए प्रयास है। सरकारों से निवेदन है कि वे इस परियोजना पर रोक लगाएं।
’सौरव बुंदेला, भोपाल, मप्र