लगातार युद्ध ने भले ही यूक्रेन को तबाह कर के रख दिया हो, मगर रूस की हालत भी खराब है। इस युद्ध से रूस को बड़ी संख्या में सैनिकों की मौत के अलावा क्या हासिल हुआ? शुरुआत में लग रहा था कि यूक्रेन फतेह करने में रूस को ज्यादा मशक्कत नहीं करना पड़ेगी, मगर विश्व के अन्य देशों से मिले हथियार ने यूक्रेन के हौसलों के साथ ही उसकी मारक क्षमता भी बढ़ा दी।
यही वजह रही है कि अपेक्षाकृत कमजोर यूक्रेन भी रूस पर भारी पड़ता गया। खेरसान से रूस की सेना की वापसी भले ही कोई पुतिनी चाल हो, मगर इस युद्ध में जेलेंस्की ने पुतिन के सारे अरमान ध्वस्त कर दिए। अभी समय है कि दोनों पक्ष वार्ता की मेज पर आएं और सर्वमान्य निर्णायक हल निकालें।
अमृतलाल मारू ’रवि’, इंदौर।
विलुप्त होती प्रजातियां
कीड़ों को अक्सर डरने की चीज के रूप में देखा जाता है ताकि एलर्जी, जहर, सड़ते भोजन और असुरक्षित रहने की स्थिति जैसे विभिन्न खतरों से बचा जा सके। हालांकि, पारिस्थितिकीविदों ने उन्हें उनकी अपरिहार्य प्रकृति के कारण पारिस्थितिकी तंत्र, मानव स्वास्थ्य और जीवन रक्षा के लिए एक महत्त्वपूर्ण कड़ी के रूप में पाया है। लगभग पचास लाख से ज्यादा प्रजातियों वाले कीट-पतंगे, कीड़े और अन्य जीव ही पृथ्वी पर अस्सी फीसद पशु जीवन के लिए जिम्मेदार हैं।
वर्षों से जलवायु परिवर्तन पर सार्वजनिक चर्चा बड़े मुद्दों जैसे स्थायी लक्ष्यों को प्राप्त करने, वैश्विक तापमान कम करने के लिए उत्सर्जन में कटौती, नवीकरणीय स्रोतों में बदलाव आदि तक ही सीमित रही है। लेकिन सूक्ष्म जीवों के अस्तित्व पर जो संकट छाया है, उस पर सब मौन हैं। वैज्ञानिक अनुसंधान से लेकर नीति निर्माण और प्रकृति संरक्षण तक के सभी क्षेत्रों में यह मुद्दा उपेक्षा का शिकार है।
सत्तर विशेषज्ञों की एक टीम द्वारा किए गए एक अध्ययन से पता चलता है कि दुनिया भर में लेपिडोप्टेरे, हाइमनोप्टेरा, गोबर बीटल, तितलियों, चींटियों, मधुमक्खियों, ततैया, मक्खियों, ड्रैगन मक्खियों, क्रिकेट आदि जैसे कीड़ों की संख्या और विविधता दोनों के मामले में गिरावट आ रही है। व्युत्पत्ति विज्ञानी एक उदास तस्वीर की भविष्यवाणी करते हैं क्योंकि अगर हम प्रकृति के साथ आने में विफल रहते हैं, तो वैश्विक कीट आबादी का चालीस फीसद पृथ्वी से साफ हो जाएगा।
विजय सिंह अधिकारी, नैनीताल।
समानता की कोशिश
आर्थिक रूप से कमजोर सवर्णों को आरक्षण उन लोगों के लिए एक बड़ा सहारा बन कर उभरा है, जो आर्थिक रूप से विपन्न होने के बावजूद आरक्षित वर्ग सरीखी सुविधा पाने से वंचित रहे हैं। इससे न केवल सवर्ण गरीबों का जीवन स्तर सुधरेगा, बल्कि जातिगत आधार पर होने वाले आरक्षण के विरोध की तीव्रता भी कम होगी और देश में आपसी सद्भाव का वातावरण भी बनेगा।
सरकार इस आरक्षण के जरिए समाज में बराबरी लाने की एक अच्छी कोशिश कर रही है। सामाजिक समरसता और सामाजिक न्याय की दिशा में उठाया गया यह अत्यंत महत्त्वपूर्ण कदम है। उम्मीद की जानी चाहिए कि इससे भविष्य में गरीबी उन्मूलन की दिशा में इसका अत्यंत सार्थक परिणाम दिखाई देंगे।
समराज चौहान, कार्बी आंग्लांग (असम)।