ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जानसन की भारत यात्रा ने राजनीतिक गलियारों के साथ वैश्विक राजनीति में भी सरगर्मियां ला दी हैं। अक्सर किन्हीं दो देशों के सर्वोच्च नेतृत्व की मुलाकात कई मायनों में अहम भूमिका लिए होता हैं। भारत और ब्रिटेन के संबंध आजादी के बाद से इतने सक्रिय नहीं रहे, जितने रूस या अन्य देशों के साथ रहे। वर्तमान परिदृश्य को देखे तो स्थितियां बदल चुकी हैं।

‘ब्रेग्जिट’ के बाद से ब्रिटेन की विदेश नीति और संबंधों में काफी बदलाव आया है जो स्वाभाविक है, क्योंकि यूरोपीय संघ (ईयू) के अंदर रहते ब्रिटेन को उसके नियमों और समझौतों के अनुसार रहना पड़ता था। इसमें मुक्त व्यापार समझौता, मुफ्त वीजा, आवागमन और कस्टम टैक्स जैसे कई समझौते थे, जिनसे ब्रिटेन को नफे की तुलना मे हानि ज्यादा हो रही थी।

जानसन की भारत यात्रा दोनों देशों के लिए महत्त्वपूर्ण रही, जिसके पीछे कई कारण हैं। कोविड काल में यूरोपीय देशों को 1929 की आर्थिक मंदी के बाद सबसे बुरा दौर देखने को मिला है, जिसकी वजह से उनकी अर्थव्यवस्था को तगड़ा झटका लगा है। ब्रिटेन भी इससे अछूता नहीं रहा। भारत यात्रा में सबसे जरूरी बिंदु भी मुक्त व्यापार समझौता है। ब्रेग्जिट के बाद ब्रिटेन को नए साझेदार देशों की जरूरत है।

इस संदर्भ में भारत सबसे अच्छा विकल्प है, क्योंकि भारत का बहुत बड़ा बाजार ब्रिटेन को आकर्षित कर रहा है। साथ ही अगर एफटीए होता है तो दोनो देशों के बीच व्यापार में भी बढ़ोतरी होगी जिससे अर्थव्यवस्था में विकास हो सकेगा। व्यापार और आर्थिक गतिविधियों से रोजगार का सृजन होगा, बाजार में तेजी आएगी और उपभोग की मांग बढ़ेगी, जिससे उत्पादकता में भी वृद्धि होगी।

भारतीय बाजार में तकनीकी सहयोग और चीन के प्रभुत्व को कम करने के उद्देश्य से यह यात्रा बेहद उल्लेखनीय रही। साथ ही अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में ब्रिटेन भारत के गगनयान मिशन में सहायता करेगा। फिर कृत्रिम बुद्धिमता के लिए भी दोनों देश सहयोग कर सकते हैं। इनके अलावा, भारत के रक्षा, सामरिक और विदेश मामलों में भी सहयोग करेगा। हालांकि ब्रिटेन रक्षा उपकरणों का इतना बड़ा निर्यातक देश नही है, लेकिन ब्रिटेन रक्षा क्षेत्र में अपनी अति आधुनिक तकनीक दे सकता है, जिससे भारत रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बन सकेगा।

भारत में इन्हीं दिनों डब्लूएचओ यानी विश्व स्वास्थ्य संगठन के अध्यक्ष डा टेड्रोस और मारिशस के स्रे प्रवीण कुमार जगननाथ की उपस्थिति गुजरात में रही। आयुष केंद्र स्थापित करना भारतीय कूटनीति और विकास का परिचायक है, क्योंकि योग को पूरी दुनिया मे फैलाने वाला भारत अब आयुष हब बनेगा, आयुष ज्ञान का विश्व में केंद्र बनेगा। ये भारतीय चिकित्सा क्षमता को प्रदर्शित कर रहा है।

अब भारत को चाहिए की वह यूरोपीय संघ से बाहर निकले ब्रिटेन का बेहतर विकल्प बन सके। उसके लिए बाजार बन सके, विदेशी निवेश को आकर्षित कर सके। टाटा जैसी भारतीय कंपनियां जो ब्रिटेन मे निवेश कर रही हैं, वहां रोजगार प्रदान कर रही हैं, उनके हितों की भी पैरवी करे। सरकारी नीतियों और लाल फीताशाही में सुधार हो, ताकि अधिक से अधिक निवेश आए और भारत में रोजगार बढ़े।
अमरसिंह सोढा, जैसलमेर, राजस्थान</p>