पेट की खातिर भारत में गरीब औरतों को अपने पेट में पल रहे आठ महीने के गर्भस्थ शिशु लिए भी सब कुछ करना पड़ता है, यथा बारात में बल्ब के झालर या फिर भट्ठे पर ईंट भी ढोना पड़ता है! पेट की खातिर इसी अवस्था में उसे खेतों में मामूली से पैसे के लिए मजदूरी करनी पड़ती है!
इसी प्रकार इसी अवस्था में अन्य बहुत से काम करने पड़ते हैं मसलन बेलदारी, घरों में झाड़ू-पोंछा, बर्तन मांजने और अमीर लोगों के घरों में मेहनत के तमाम काम करने पड़ते हैं।
देश के स्वतंत्र होने के बाद विकास के तमाम तमाशों के ढोल पीटने के बाद भी पिछले सात दशक से ज्यादा वक्त में कांग्रेसियों और अब कथित सबसे योग्यतम शासकों के जमाने में भी जब देश के विश्वगुरु बनने का दावा किया जा रहा है, एकतालीस प्रतिशत स्त्रियों को ढंग से खाना नहीं मिलता है, जिसके कारण वे कुपोषित और खून की कमी से से ग्रस्त हो जाती हैं। विडंबना यह है कि इस हकीकत के बावजूद सबको अपनी हालत पर गर्व करने की सलाह दी जाती है।
’निर्मल कुमार शर्मा, गाजियाबाद, उप्र
सावधानी का तकाजा
राजधानी दिल्ली और कई राज्यों में पिछले कुछ दिनों से बरसात का माहौल है। मौसम विभाग के अनुसार आने वाले दिनों में भी देश के कई इलाके बरसात से तर-बतर रहेंगे। ठंड के मौसम में बारिश के कारण वातावरण में और भी ज्यादा ठिठुरन हो गई है। कई इलाकों में ओलावृष्टि की भी खबरें आई है। गिरते तापमान के साथ दृश्यता भी घट गई है। अब तक 105 मिलीमीटर बारिश रिकॉर्ड की जा चुकी है। इससे पहले वर्ष 1985 में 173.2 मिलीमीटर बारिश दर्ज की गई थी। पहले से ही पूरा देश महामारी से परेशान है। लोगों के सामने यह परिस्थिति एक चुनौती बनी हुई है, जिसमें लोग दोहरे खतरे का सामना कर रहे हैं। घटते तापमान के साथ हमें सावधानियां और भी बढ़ानी होगी।
’निशा कश्यप, हरीनगर आश्रम, नई दिल्ली</p>