कोरोना कहर के प्रथम एवं द्वितीय तांडव से अभी देश उबरने की जुगत में ही है कि संभावित तीसरी लहर ने देशवासियों के दिल में भय की एक लंबी रेखा खींच दी है। करीब सवा सौ करोड़ की जनसंख्या से आच्छादित अपने देश में अभी तक लगभग चालीस करोड़ लोगों का टीकाकरण हुआ है। प्रधानमंत्री ने पर्यटन एवं सार्वजनिक स्थलों पर जमा हो रही भीड़ पर चिंता प्रकट करते हुए जो सावधानी संदेश दिया, उसे सबसे पहले उनके दल की उत्तर प्रदेश सरकार को दिल और दिमाग से अनुपालन करने की जरूरत दिख रही है। उत्तर प्रदेश सरकार ने आरटीपीसीआर जांच में निगेटिव रिपोर्ट पाए व्यक्तियों को ही कांवड़ यात्रा की जो अनुमति दी है, वह खतरों से खेलने जैसा है। वह भूल रही है कि पूर्व हरिद्वार कुंभ स्नान में उत्तराखंड सरकार ने ऐसी ही शर्तों के आधार पर समारोह में भाग लेने की अनुमति देकर कोरोना संक्रमण को ‘आ बैल मुझे मार’ से चरितार्थ किया था। उत्तर प्रदेश सरकार के इस कृत्य पर सर्वोच्च न्यायालय ने स्वत: संज्ञान लेकर हैरानी प्रकट की है।

वर्तमान कोरोना संकट में व्यक्ति की धार्मिक आस्था उसकी जीवन रक्षा से अधिक महत्त्वपूर्ण नहीं हो सकती। चार धाम की यात्रा को रोकते हुए उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने 24 जून को स्पष्ट रूप में कहा था कि कुंभ और कोरोना के कारण मौतों के बीच सीधा संबंध दिखा। ऐसे में चार धाम यात्रा नई आपदा का रूप ले सकती है। इसी तरह मद्रास हाईकोर्ट ने तीन जुलाई को धार्मिक स्थलों को खोलने के क्रम में सुनवाई के दौरान कहा था कि पूजा और धार्मिक अनुष्ठान का महत्त्व जीवन जीने से बड़ा नहीं हो सकता। श्रद्धा तब ही फलित होती है जब हम उपस्थित काल और परिस्थिति के नब्ज को पहचान कर अपना आचरण अपनाते हैं।

मसूरी, धर्मशाला, कुल्लू-मनाली, शिमला जैसे पर्वतीय क्षेत्रों में पर्यटकों की उमड़ती भीड़ द्वारा कोविड प्रोटोकॉल के उल्लंघन की तस्वीरें टीवी पर नित्य देखी जा रही हैं। दिल्ली, कोलकाता, मुंबई एवं चेन्नई जैसे महानगरों के बाजारों में उमड़ती भीड़ ने भी प्रोटोकॉल उल्लंघन की सीमा लांघ दी है। लोग इस कदर लापरवाही कर रहे हैं कि न तो दूरी का खयाल है और न मास्क के उपयोग का ही। संतोष की बात है कि कोरोना की दूसरी लहर के चरम काल शांत होने के बाद देश के अधिकतर भागों में कोरोना संक्रमण की संख्या घट रही है, लेकिन संक्रमितों के मौत के आंकड़े अभी भी चिंता पैदा करते हैं। कोरोना ने दूसरी लहर में जो अपने खूनी पंजों का खेल दिखाया, उससे सबक लेकर सावधान रहना जीवन रक्षा का प्रथम सूत्र है। देश को महामारी से बचाने का एक ही रास्ता है कि सार्वजनिक रूप से हम भीड़ का हिस्सा न बनें। जिंदगी बचेगी तो हम सब अपने अरमान पूरा कर सकेंगे, अन्यथा हमारी लापरवाही हमारे आसपास खड़े तमाम व्यक्तियों को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकती है।
’अशोक कुमार, पटना, बिहार