दो देशों के बीच सामरिक संबंध एवं प्रगाढ़ मित्रता के क्या क्या मायने हो सकते हैं? क्या हम अपने मित्र देशों की प्रेस की आजादी और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर लगाम लगा सकते हैं? क्या हम अपने मित्र देशों के मीडिया की इस बात के लिए खिंचाई कर सकते हैं कि वह उनके यहां के घटनाक्रमों को कवर करने में संयम बरते? रूस एक तानाशाह देश है।
इसका सबूत उक्रेन में उसके हमले से तो मिलता ही है। साथ ही भारत स्थित उसका दूतावास पिछले दो महीनो में दो बार प्रेस नोट जारी करके, हमारी प्रेस की आजादी पर प्रश्नचिह्न खड़ा कर रहा है। पहली बार कजाकिस्तान की स्थिति के कवरेज को लेकर जनवरी में और दूसरी बार अभी मार्च में, भारत की मीडिया को उक्रेन के मामले में झूठा प्रचार करने से बचने को कह रहा है। यह सब क्या है?
क्या कभी भारत ने किसी दूसरे देशों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर लगाम लगाने को कहा है? क्या भारत किसी दूसरे देश के प्रेस फ्रीडम पर लगाम लगाने की नसीहत दी है? अगर नहीं तो फिर तानाशाही रूस ऐसा क्यों कर रहा है? क्या यह भारत के अंदरूनी मामलों में दखल नहीं है? भारत ऐसी दखलअंदाजी को क्यों बर्दाश्त कर रहा है?
जंग बहादुर सिंह, गोलपहाड़ी, जमशेदपुर
मतदाता का फर्ज
मजबूत लोकतंत्र के लिए जरूरी है कि सभी मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करें, क्योंकि मतदान की ताकत हमें हमारे संविधान से मिलती है। यह सभी भारतीय नागरिकों का संवैधानिक अधिकार है। सभी को मतदान जरूर करना चाहिए, लेकिन चिंता का विषय यह है कि हम अपने मताधिकार का प्रयोग कैसे करें। फिलहाल अभी उत्तर प्रदेश में विधानसभा के चुनाव हो रहे हैं, जिसमें सभी मतदाता इस लोकतंत्र के महापर्व में अपने मताधिकार का प्रयोग कर रहे हैं, लेकिन वहीं एक ओर व्यापक स्तर पर मतदाताओं के नाम मतदाता सूची से ही गायब हैं।
ऐसे में वे मतदाता अपना मतदान कैसे करें। यह चिंता का विषय है। क्यों न हो, जब एक वोट ही देश की दशा और दिशा तय कर सकता है, तो हमें इस बात को समझ जाना चाहिए कि एक वोट हमारे लिए और देश के लिए कितना महत्त्वपूर्ण है। ऐसे में इस गंभीर मामले में चुनाव आयोग को तुरंत संज्ञान लेना चाहिए ताकि वे सभी मतदाता, जिनका मतदाता सूची में नाम नहीं है उनका नाम जुड़े जाए, जिससे कि वे अपने मताधिकार का प्रयोग कर सकें।
राहुल उपाध्याय, बलिया