यह कोई हाल की घटना नहीं है। कौटिल्य का अर्थशास्त्र शासनकला पर एक ग्रंथ है, जो साम्राज्य में किसी भी दुश्मन के खतरे की विस्तृत रिपोर्ट प्राप्त करने के लिए प्राचीन भारत में भी विस्तृत जासूसी प्रणाली का एक विवरण देता है।
एकध्रुवीय से बहुध्रुवीय दुनिया में ध्रुवीकरण के उदय के कारण इस उद्योग ने पिछले कुछ वर्षों में उल्लेखनीय प्रगति देखी है। यूक्रेन-रूस युद्ध और बढ़ती अनिश्चितताओं ने राष्ट्रों को अपने पैर की अंगुलियों पर रखा है। ड्रोन के जरिए निगरानी ऐसा ही मामला है। आाधुनिक तकनीक जासूसी के अहानिकर तरीकों को देख रही है।
संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा अटलांटिक महासागर के ऊपर एक विशाल चीनी गुब्बारे की हाल की घटना के मद्देनजर कहा जा सकता है कि निकट भविष्य में निगरानी तकनीकों की रूपरेखा बदलने के लिए तैयार है। चीन यह कहकर मजबूती से अपनी जमीन पर कायम है कि उसे मौसम की निगरानी के लिए तैनात किया गया था। हालांकि इस वाकये ने इस तरह के कदम के उद्देश्यों के बारे में एक बहस छेड़ दी है।
जर्मन चांसलर एंजेला मार्केल के फोन वार्तालापों पर विकीलीक जैसे कई रहस्योद्घाटन, कई देशों के लोगों पर जासूसी करने के लिए परिष्कृत इजरायली ‘स्पाइवेयर’ पेगासस खरीदे, नार्वे ने रूस पर 2019 में अपने समुद्र तट पर जासूसी करने के लिए बेलुगा ह्वेल का उपयोग करने का आरोप लगाया। ये सब कुछ उदाहरण हैं जो इस क्षेत्र में बढ़ती प्रतिद्वंद्विता को दर्शाते हैं। देश तेज हो रहे हैं।
वैश्विक निगरानी उद्योग ने 2020 में लगभग अस्सी बिलियन डालर से 2022 में 130 बिलियन डालर तक की वृद्धि देखी है और 2026 तक इसके 213 बिलियन डालर होने की उम्मीद है। व्यक्तियों की गोपनीयता भंग करने के लिए इसके गंभीर निहितार्थ हैं, क्योंकि कई कंपनियां ग्राहकों के खर्च करने के तौर-तरीके पर नजर रखती हैं। तकनीक में निवेश करने वाली सरकारें अपने पक्ष में जनता की राय को आकर्षित करने के तरीके और साधन अपनाती हैं।
एक अमेरिकी मीडिया रिपोर्ट ने भारत, जापान, वियतनाम, ताइवान, फिलीपींस आदि से सामरिक महत्त्व के उभरते क्षेत्रों पर जानकारी एकत्र की है। कुछ वर्षों के दौरान चीन के जुझारू और आक्रामक रवैये के कारण भारत को अपनी सीमाओं को अच्छी तरह से सुरक्षित रखने की आवश्यकता है। इसके अलावा, इस प्रकरण से एक महत्त्वपूर्ण बात यह है कि अपनी खुफिया जानकारी और जासूसी नेटवर्क को बढ़ाया जाए, ताकि भू-राजनीतिक खेलों में किसी की चतुराई कम न हो।
विजय सिंह अधिकारी, मीनार, उत्तराखंड।
नकल के पांव
देश के विकास में पढ़े-लिखे नागरिकों का योगदान सर्वोपरि माना जा सकता है, लेकिन पढ़े-लिखे का मतलब नकल करके या फिर अनुचित तरीके से कोई डिग्री हासिल करना नहीं, बल्कि किताबों के ज्ञान को दिमाग में अच्छी तरह बिठाना होता है। अफसोस की बात यह है कि हमारे देश में लोग किसी भी उचित-अनुचित तरीके से डिग्री हासिल करना चाहते हैं।
शिक्षा प्रणाली के दोष देश के लिए दीमक होते हैं। भारत में शिक्षा संस्थाओं और प्रतियोगिताओं में भी नकल करने-करवाने के मामले मीडिया में सुर्खियां बनते हैं। कुछ विद्यार्थी पढ़ाई के समय का सदुपयोग नहीं करते हैं और परीक्षा के समय परीक्षा में पास होने के लिए अनुचित साधनों की तलाश करने लगते हैं। कुछ नकल करके परीक्षा पास करने की फिराक में भी रहते हैं। लेकिन ऐसे विद्यार्थियों को इतना याद रखना चाहिए कि नकल की गलत आदत कभी न कभी, कहीं न कहीं इनके भविष्य के लिए भी बाधा उत्पन्न कर सकती है, भविष्य खराब कर सकती है।
अगर ऐसे विद्यार्थी समय का सदुपयोग करें, पढ़ाई दिन-रात करें तो उन्हें नकल की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। पढ़ाई करना कोई कठिन काम भी नहीं है। सभी शिक्षकों को चाहिए कि वे नकल की प्रवृत्ति के विरुद्ध गंभीर हों। वे विद्यार्थियों का नकल करवाने में मदद न करें और न ऐसी स्थितियां बनने दें। सभी विद्यार्थियों को नकल से होने वाले नुकसानों बारे में हमेशा बताएं। नकल करके परीक्षाओं में पास होने वाले विद्यार्थी अगर परीक्षा पास भी कर लेते हैं और किसी क्षेत्र में नौकरी पा भी लेते हैं तो क्या वे अपने कार्य को सही तरह से कर पाएंगे? देश में भ्रष्टाचार के लिए शिक्षा प्रणाली में आए दोष भी जिम्मेवार है।
राजेश कुमार चौहान, जलंधर।
तनाव का मैदान
अमेरिकी विदेश मंत्री को कुछ भी बयान देने से पहले जरा सूझबूझ का परिचय देना चाहिए था। म्यूनिख सुरक्षा सम्मलेन की संपत्ति पर ऐसा लगा था कि कम से कम महीनों बाद चीन और अमेरिका के विदेश मंत्री मिल रहे हैं, तो इसमें कुछ शांति का माहौल बनेगा और दोनों देश के संबंधों में जो दरार बढ़ता जा रहा है, उसमे सुधार संभव होगा।
मगर एंटनी ब्लिंकन का बिना किसी ठोस सबूत के चीन पर आरोप लगा देना कि वह रूस को यूक्रेन युद्ध के लिए हथियार आपूर्ति कर रहा है, गलत है। अभी तक ऐसे तथ्य कहीं नहीं देखने को मिले हैं कि रूस को चीन ने इस तरह की कोई मदद की है। उल्टे रूसी आक्रमण के पहली वर्षगांठ के दिन चीनी राष्ट्रपति जिनपिंग ने शांति संदेश देने की घोषणा की।
यानी इस युद्ध के भविष्य पर वे अपना मंतव्य रखने वाले थे, उससे पहले ही अमेरिका ने माहौल को बिना मतलब तनावग्रस्त कर दिया। इसके कारण चीनी विदेश मंत्री वांग यी को कहना पड़ा कि रूस के साथ चीन का कैसा संबंध होगा, उस पर अमेरिका हुक्मनामा जारी नहीं कर सकता। चीन के राष्ट्रपति ने पिछले एक वर्षों के दौरान इस युद्ध के बारे में कुछ नहीं कहा, इसलिए दुनिया उनके संदेश का ही इंतजार कर रही है, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय राजनीति में अब सभी देश चीन की चाल के साथ उसकी ताकत को समझते हैं।
जंग बहादुर सिंह, गोलपहाड़ी, जमशेदपुर।