पर्यावरण के बिना मनुष्य का कोई अस्तित्व नहीं है, लेकिन शायद मनुष्य यह भूल गया है। तकनीकी युग के मानव ने विलासिता की खातिर और आर्थिक विकास के नाम पर प्रकृति के साथ बड़े पैमाने पर छेड़छाड़ की है, जिससे प्रकृति में असंतुलन व्याप्त हो गया है। इसका असर पूरी पृथ्वी पर दिख रहा है। सारी दुनिया में पर्यावरणीय संकट का दौर है। ग्लोबल वार्मिंग, असामयिक वर्षा, बाढ़, सूखा, नए-नए रोग आदि ने मनुष्यजाति के साथ-साथ जीव-जंतुओं को भी गहरे संकट में डाल दिया है। नतीजा यह है कि पौधों और वनस्पतियों की बहुत-सी प्रजातियों के अलावा जीव-जंतुओं की भी बहुत-सी प्रजातियां विलुप्त हो रही हैं। एक रिपोर्ट के मुताबित ग्लोबल वार्मिंग से छिहत्तर करोड़ जनसंख्या सीधे-सीधे प्रभावित दिख रही है। इसकी वजह पर्यावरण के प्रति अनदेखी है। कांटे बोने पर आप फल खाने की आशा कैसे कर सकते हैं!

आर्थिक और राजनीतिक हितों की टकराहट में पर्यावरण पर कितना ध्यान दिया जा रहा है, और मनुष्य अपने पर्यावरण के प्रति कितना जागरूक है यह आज का सबसे ज्वलंत प्रश्न है। जलवायु परिवर्तन को लेकर आज विश्व-मंच पर कितनी बातें हो रही हैं और इस समस्या से निपटने के लिए किस तरह के प्रयास किए जा रहे हैं इस पर विचार करने की जरूरत है। महज विश्व-मंच पर नेताओं के बोल देने से समस्या का निपटारा नहीं किया जा सकता। 1992 का रिओ पृथ्वी सम्मेलन हो या 1997 का क्योटो प्रोटोकॉल, उस वक्त जो बातें कही गर्इं, जो संकल्प किए गए, उनको कितना अमल में लाया गया? अभी संपन्न हुए पेरिस सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन को लेकर एक बार फिर से विश्व के दिग्गज नेताओं ने मंच साझा किया, एक नई उम्मीद के साथ कॉर्बन उत्सर्जन में कटौती की बात कही गई।

आशा करते हैं कि कथनी और करनी मे फर्क न हो। इसके साथ ही सभी को अपने-अपने स्तर पर भी प्रदूषण से निपटने के उपाय करने चाहिए, जैसे प्लास्टिक का इस्तेमाल कम करें, नदियों में गंदगी न फैलाएं, वाहनों का कम से कम प्रयोग करें, पानी का इस्तेमाल सीमित मात्रा में करें और अपने घर के साथ-साथ गांव व शहर को स्वच्छ एवं स्वस्थ बनाने में मदद करें। तभी मनुष्य और पर्यावरण का संबंध संतुलित बना रह सकता है।

पर्यावरण के प्रति समाज को उसके कर्तव्यों का एहसास होना आवश्यक है। अनियोजित शहरीकरण चेन्नई में बाढ़ का एक प्रमुख कारण है। ग्लोबल वार्मिंग से मुंबई, न्यूयार्क, लंदन सहित कई बडेÞ शहरों के एक दिन डूब जाने की आशंका बनी हुई है। प्रदूषण से ओजोन परत में छेद होने से कैंसर का खतरा बढ़ गया है। यह सब मनुष्य की देन है। समय रहते अगर नहीं चेत पाए तो बाद में वही हाल होगा कि ‘चिड़िया चुग गई खेत तो पछताए होत है का।’
’विवेक मिश्रा, भदोही, उ.प्र.