एक दल ने देश में ऊर्जा संकट को अनदेखा करके मतदाताओं को लुभाने के लिए मुफ्त बिजली की घोषणा कर दी, जल संकट को दरकिनार कर लोगों को मुफ्त जल की घोषणा कर दी। यह विचारणीय है कि जो चीज आपको मुफ्त में हासिल होगी, क्या उसकी महत्ता उतनी रहेगी? शायद नहीं। जैसे कोयला और पेट्रोलियम खत्म होने के कगार पर हैं, उसके कारण पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस की कीमतें कहां पहुंच गई हैं। इसलिए हम सब इनकी महत्ता समझते और किसी भी तरह व्यर्थ नहीं करते हैं।

इसी श्रेणी में पानी और बिजली आते हैं। आज हमें पीने का पानी मिल रहा है, प्रकाश के लिए बिजली मिल रही है, पर क्या ये नवीकरणीय स्रोत हैं? नहीं। पृथ्वी पर उपलब्ध जल का मात्र एक फीसद ही मानवीय उपयोग के लिए उपलब्ध है। भूजल संकट किसी से छिपा नहीं है। यानी जो राजनीतिक दल मात्र चुनाव जीतने के लिए प्राकृतिक संसाधनों को मुफ्त में बांटने की घोषणाएं कर रहे हैं, क्या वे मतदाता को मुफ्त में पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस देने का वादा कर सकते हैं, जिसकी वजह से मंहगाई ने निर्धन की कमर तोड़ रखी है। जबकि पेट्रोलियम उत्पादों पर वैट कम करके राज्य सरकारें महंगाई पर कुछ लगाम लगा कर गरीबों की मदद कर सकती हैं। पर उसके बारे में न तो केंद्र सरकार और न ही राज्य सरकारें कुछ सोचती हैं।

मतदाताओं को समझना होगा कि मुफ्त बंटने वाले सामान की कीमत आम जनता को ही चुकानी पड़ेगी। मुफ्त की राजनीति की हवा निकालने किए एक बार मतदाता को लामबंद होकर ऐसे दलों को आइना दिखाना होगा, जो देश के प्राकृतिक संसाधनों को मुफ्त की राजनीति में तबाह कर देना चाहते हैं।
राजेंद्र कुमार शर्मा, रेवाड़ी, हरियाणा

कुछ तो कीजिए

हम युवा प्रतिदिन सूरज की लाली के साथ अपनी दिनचर्या शुरू करते हैं। उस सूरज को केंद्र मान कर चलते हैं। सूरज की तो शाम आ जाती है, पर हमारी शाम न जाने कहां खोई है। हमारी कड़ी मेहनत और गहन अध्ययन का परिणाम क्या दो पक्षों की प्रतिद्वंदिता, उनके आपसी मतभेद, ईर्ष्या और कटुता पर नहीं टिकी है? हम हर सुबह कितने संघर्ष में अपना अध्ययन पूर्ण करते हैं, पर अंतत: क्या होता है। कभी फार्म ही नहीं आते, तो कभी अंतिम समय पर पेपर लीक हो जाता है, तो कभी परिणामों में नए नियम लगा दिए जाते हैं। क्षमा कीजिएगा, हम आपकी टेबल की चाय नहीं, जो चुस्कियों में समाप्त हो जाएं, यह हमारी जिंदगी है, कुछ तो रहम कीजिए।

आज सब कुछ देख कर इन होठों पर सिर्फ कंपन होता है, आवाज तो कहीं आपके नियम और शर्तों रूपी कुशन के नीचे दब गई है। जो भी माननीय महोदय आते हैं, उस कुशन को हटा कर नई कुशन लगा देते हैं। जब तक हम कुछ समझ पाते, तब तक सब फिसल जाता है।
आराधना पाठक, नई दिल्ली</p>