संसद के दोनों सदनों का कोई भी सत्र ऐसा नहीं जाता जिसमें बीस-पच्चीस प्रतिशत समय हंगामे की भेंट न चढ़े। विपक्ष में चाहे कोई भी दल हो, इन सांसदों को सदन की कार्यवाही पर खर्च होने वाले धन की बरबादी की जरा भी चिंता नहीं होती। पैंतीस-चालीस साल पहले किसी बात पर असहमति होने पर सदन का बहिर्गमन होता था जो एक बड़ी बात माना जाता था। लेकिन आज हंगामा ही नहीं, तोड़फोड़ से भी परहेज नहीं किया जाता। सभी दलों के प्रतिनिधियों से अध्यक्ष / सभापति के बात करने और सहमति के बाद भी हंगामा जारी रहता है।
पिछले दिनों एक मंत्री के बयान पर खूब हंगामा हुआ जिसके लिए मंत्री और प्रधानमंत्री ने माफी मांग ली। तब भी सदन का कामकाज बाधित रहा। सवाल है कि जब कई स्थानों पर मंत्री के बयान पर कानूनी कार्रवाई शुरू हो चुकी थी तो कम से कम संसद को तो बाधित न किया जाता।
’यश वीर आर्य, नई दिल्ली
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