जिस दिन उत्तरी कश्मीर (बारामूला जिले) के उरी सेक्टर की एक सैन्य छावनी पर पाक समर्थित आतंकियों के नापाक हमले को विफल करते हमारी सेना के एक जांबाज अफसर सहित दर्जन भर सुरक्षाकर्मी वीरगति को प्राप्त हुए, उस दिन मैं संयोग से जम्मू में था। दिन भर विभिन्न टीवी चैनलों पर इस भयंकर मुठभेड़ और फौज की कारवाई को मैं एकाग्रता से देखता रहा। बीच-बीच में चैनल भी बदलता रहा। मन भारी हुआ जब सेना की वीरतापूर्ण कार्रवाई की खबर के साथ बराबर यह खबर भी दिखाई जा रही थी कि माफी मांग चुकी साध्वी निरंजन के खिलाफ नौ विपक्षी राजनीतिक दल एकजुट होकर साझा बयान जारी कर रहे हैं।
यह बेमौके का बयान देश और उसकी सुरक्षा के प्रति न केवल हमारी चिंता की मानसिकता को दर्शाता है, बल्कि हमारी राजनीतिक प्राथमिकताएं भी रेखांकित करता है। लगता है, देश की सुरक्षा से किसी को कोई लेना-देना नहीं है। क्यों न आने वाले समय में सभी के लिए सैन्य-प्रशिक्षण आवश्यक कर दिया जाए, ताकि नागरिकों के साथ-साथ नेतागण और उनके निकटजन भी देश की सुरक्षा के बारे में गंभीरता से सोचें और देश के काम आएं। जैसे कि संकेत मिल रहे हैं, भविष्य में देश के सामने सुरक्षा संबंधी आंतरिक और बाहरी चुनौतियां घटने के बजाय बढ़ने वाली हैं। इसलिए भी ‘सैन्य-प्रशिक्षण’ की अनिवार्यता पर विचार करने की आवश्यकता है!
’शिबन कृष्ण रैणा, अलवर, राजस्थान
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