केंद्रीय मंत्री निरंजन ज्योति के अभद्र बयान पर बवाल खड़ा हो गया है। सालों-साल बीत जाते हैं सकारात्मक काम करते तो भी मीडिया इतना नोटिस नहीं लेता जितना एक अभद्र बयान और गाली ने कर दिया। अब भी जानने की जरूरत है कि हंगामा है क्यों बरपा? चलिए, कुछ और जान लेते हैं। जब सैकड़ों की तादाद में आपराधिक पृष्ठभूमि के लोग माननीय सांसद और विधायक बन कर सार्वजनिक जीवन के अति महत्त्वपूर्ण मंच पर आए हैं तो हंगामा नहीं होगा तो क्या भजन और रामधुन होगी?

यदि संसदीय चुनावों में सफलता का बड़ा योगदान झूठ, फरेब, हर तरह की जालसाजी, भ्रम फैलाने, उकसाने, भड़काने, चालाकी, उद्दंडता, धोखाधड़ी, छुद्रताओं, कुटिलताओं, धमकियों, गुंडागर्दी, लालच, रिश्वत, सभी तरह के ज्ञात-अज्ञात अपराधों और शार्टकट का होता है वह जगजाहिर है ही तो हंगामा नहीं क्या सत्संग की मासूम उम्मीद करते हैं?

लोकलाज के लिए भले ही हंगामे की निंदा करना वरिष्ठ नेताओं की मजबूरी होता हो अंदरखाने सब जानते हैं कि हंगामा बरपाने वाले ही पार्टी के कर्मठ कार्यकर्ता, सच्चे शुभचिंतक और चुनाव जिताने वाले होते हैं। जिस तरह दुधारू गाय की लात से परहेज नहीं करते उसी तरह चुनावी वैतरणी पार कराने वाले को अवांछनीय नहीं माना जा सकता। अब भी जानना चाहते हैं कि हंगामा है क्यों बरपा?

’श्याम बोहरे, बावड़ियाकलां, भोपाल

 

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