देश में न स्वराज दिख रहा है, न सुराज। हां, बाबाओं का राज जरूर हर तरफ दिख रहा है। अलग-अलग ‘राम’ नामी बाबाओं में हम गजब का जोर देख सकते हैं। बिना राजनीति इनका यह जोर नहीं टिक सकता। शायद इसीलिए रोज लुटती-पिटती जनता की चिंता छोड़ बाबाओं को सरकार की ओर से सुरक्षा मिल जाती है। बड़े-बड़े डेरे सरकारों को कैसे हैं घेरे! विचित्र किंतु यह है सत्य। शासन की असीमित शक्ति क्योंकर इनके आगे बन जाती है भीगी बिल्ली! फरेबी बोलों में फंसी भूखी-प्यासी, निराशा से टूटी जनता क्योंकर इनकी बन जाती है दासी! जनता भी है इनकी दासी और सरकार पर ये अधिशासी!

जिस धार्मिक पाखंड और समाज में गहरे तक बैठे ढोंग के खिलाफ कबीर ने ताजिदंगी अलख जगाया, छुआछूत और भेदभाव के खिलाफ दोहे और पद लिखे, जम कर माहौल बनाया उन्हीं कबीर के नाम पर पंथ का नाम रख कर कथित बाबा रामपाल ने जनता को भरमाया और खूब धन कमाया। जब गले तक आ लगी, तब जाकर सरकार ने उसे अब जेल भिजवाया।

आसाराम के बाद रामपाल जैसे-तैसे जेल गए, पर बाबा रामदेव जेड श्रेणी की सुरक्षा लेकर सरकार को शीर्षासन करवा रहे हैं। उनके कई चेले सांसद हैं, कई मंत्री। गजब का है इनका फसाना, फकीरी का बाना और भरा पड़ा खजाना। समर्थकों को अध्यात्म की घुट््टी पिला कर आसाराम की भांति रामपाल ने भी खुद भौतिकता में खो कर ऐशो-आराम का दामन थाम रखा था। उसके बरवाला आश्रम में आठ सौ सीसीटीवी कैमरे, आलीशान तरण ताल, विलासी सुविधाओं वाले बाथरूम, हथियार बंद कमांडो, हथियारों के जखीरे, अश्लील साहित्य, महिला बाथरूमों में सीसीटीवी कैमरे लगे होने के मायने क्या हैं? कहां से आया इतना बड़ा खजाना? कहां है आयकर विभाग? विदेश में काले धन पर तो बहुत भरमा और बहका रहे थे रामदेव। पर इन बाबाओं के साथ खुद रामदेव के पास कहां से आया धन यह नहीं बता रहे हैं मोदी।

अब न देर करो। इन पाखंडियों को पाबंद करो। इनके खजाने और संपदा को जब्त करो। जनता का धन जनता के नाम करो। क्यों जहां-तहां विदेशी निवेशकों के आगे नाक रगड़ रहे हो। बुलाओ कैबिनेट, बनवाओ नोट। केवल लफ्फाजी नहीं, कुछ काम करो।

औरत की इज्जत पर सबसे ज्यादा खतरा भारत में होने की बात ‘लौंसेट’ पत्रिका ने भी स्वीकार की है। महिला न घर में, न आश्रम में और न दफ्तर में सुरक्षित है। इस पत्रिका की हालिया रिपोर्ट के अनुसार भारत में सैंतीस प्रतिशत महिलाएं हिंसा की शिकार हैं जबकि पूरी दुनिया में महिलाओं के खिलाफ हिंसा की औसत दर तीस प्रतिशत है। यह भी सच है कि बदहाल जिंदगी, रोज के झगड़े और मनोविकारों के ग्रस्त महिलाएं सुकून की खोज में ढोंगी बाबाओं की गिरफ्त में आकर अपना सर्वस्व गंवा जाती हैं। चहेतों की पनप रही इस व्यवस्था में गरीब और पीड़ित की कौन करेगा सुनवाई? महिला चाहे कितने ही बड़े पद पर क्यों न चली जाए, सक्षमों की व्यवस्था की शिकार हो ही जाती है। आम जनता का धन चहेतों की झोली में डालने के अनेक उदाहरणों के बीच ताजा उदाहरण स्वयं प्रधानमंत्री ने प्रस्तुत कर दिया है। आस्ट्रेलिया दौरे में साथ गए चहेते उद्योगपति अडानी की आस्ट्रेलियाई कोयला खनन कंपनी को भारतीय स्टेट बैंक से 6200 करोड़ रुपए का ऋण स्वीकृत करवाया।

पहली बार किसी भारतीय बैंक ने विदेशी परियोजना पर ऋण स्वीकृत किया है। जिस अडानी समूह पर पहले से ही 72000 करोड़ रुपए के ऋण हैं, उस पर यह कृपा क्यों बरस रही है, आप समझ सकते हैं। ‘मोदी-मोदी’ के नारे चाहे वे हमारे देश की किसी सभा में सुनाई दें या विदेश के किसी व्यापारी या भारतवंशियों के मंच से, एक जैसे क्यों लगते हैं? क्योंकि इनके प्रायोजकों का जत्था यहां भी है वहां भी।
’रामचंद्र शर्मा, तरुछाया नगर, जयपुर

 

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