हमारी पृथ्वी पर जनसंख्या, पेड़ों की कटाई, वातावरण में प्रदूषण आदि के कारण संतुलन बिगड़ता जा रहा है। संसार का पहला राष्ट्रव्यापी हरित दल (1972) का सतत् पोषणीय विकास की अवधारणा लोगों के अंदर कम देखने को मिलती है। यहां तक कि लोग प्राकृतिक संपदा का क्रूरता से दोहन करके अपने पेटी भरने के मौका में लगे रहते हैं। जबकि ये हमें भोजन तथा उद्योगों के लिए कच्चा माल देते हैं। संसार के आर्थिक प्रणाली का आधार मत्स्य, वन, घास के मैदान तथा कृषि योग्य भूमि है। पेड़ों की अंधाधुंध कटाई पर्यावरण और परिवेश के लिए खतरा बनता जा रहा है। पिछले चार दशकों में भारत के वन खतरनाक हालत तक खाली होते गए हैं। भारत अड़तालीस लाख एकड़ प्रतिवर्ष की दर से वन को गंवाता जा रहा है। हमें यह सोचना चाहिए कि हमने यह भूमि अपने पूर्वजों से पृथक रूप से प्राप्त नहीं की है। हमने इसे अपने बच्चों से उधार लिया है। यह किसी भी पीढ़ी का इस पृथ्वी पर असीमित समय के लिए अधिकार नहीं है।
’वरुण कुमार, रतनपुर, बेगूसराय, बिहार
देर से बधाई
यह समझना मुश्किल है कि दुनिया के कुछ देशों के नेता जो बाइडेन के जीत को क्यों नहीं पचा पा रहे हैं! तीन नवंबर को चुनाव संपन्न हो गए थे। पांच नवंबर तक स्थिति साफ हो चुकी थी कि जो बाइडेन ही अगले राष्ट्रपति होंगे। फिर भी कई देशों को क्यों ऐसा लगा की ट्रंप की अदालत में नतीजों को चुनौती देने वाली बात में दम है? कई नेताओं ने बाइडेन को बधाई भेजी जरूर, लेकिन उसमें काफी देर कर दी गई। रूस के ब्लादमीर पुतिन, ब्राजील के जैर बोलसेनारो, मैक्सिको के श्री लोपेज ने तो और ज्यादा वक्त लिया, जब तक विधिवत घोषणा नहीं हुई कि ट्रंप को वाइट हाउस खाली करना ही पड़ेगा। कहीं ऐसा तो नहीं यह सब देरी सिर्फ संकीर्ण राष्ट्रवाद की सोच रखने वाले नेताओं द्वारा दूसरे राष्ट्रवादी यानी ट्रंप के समर्थन में किया गया?
’जंग बहादुर सिंह, जमशेदपुर, झारखंड
भ्रष्टाचार बनाम नैतिकता
भारत के एशिया में प्रथम आने पर भ्रष्टाचार अब और भी गहरे चिंतन का विषय बन गया है, जिसका सीधा-सा हल प्राथमिक कक्षाओं से सरकारी कार्यालयों तक में नैतिक शिक्षा की उपस्थिति को अनिवार्य करना ही बचा हुआ है, क्योंकि भ्रष्टाचार एक दिमागी उपज है, जो सिर्फ मनुष्य को नैतिकता का पाठ पढ़ाने और उसे अमल में लाने पर ही खत्म होगी। सरकार ने नोटबंदी जैसे कठोर कदम उठाए, लेकिन वास्तव में उसका कोई खासा असर देखने को नहीं मिला। हालांकि तब भ्रष्टाचार खत्म होने के दावे किए गए थे, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। आने वाले समय में भ्रष्टाचार को नैतिकता के द्वारा ही जड़ से उखाड़ा जा सकता है।
’अनुराग माथुर, अमझेरा, धार, मप्र