रोजाना महंगे होते पेट्रोल-डीजल ने परिवहन से लेकर माल ढुलाई तक को महंगा कर अपना प्रभाव डालना शुरू कर दिया है। आटा, दाल, सब्जी, दूध से लेकर रोजाना उपयोग मे आने वाली हरेक वस्तु के भाव आसमान छू रहे हैंछ कोरोना महामारी की वजह से दैनिक जीवन मे आए बदलाव के साथ आर्थिक जगत मे हुई उथल-पुथल ने लाखों लोगों के रोजगार छीन कर बेरोजगारी का प्रतिशत बढ़ा दिया है।

लंबी पूर्णबंदी के चलते लोगों के आय के स्रोत छिन गए और आज भी हालात में ज्यादा सुधार नहीं आया हैछ देश में परिस्थितियां सामान्य होने में वक्त लग सकता है। जनता के लिए बढ़ी कीमतें, बढ़ी महंगाई प्रमुख परेशानी का मुद्दा है। आम आदमी को अपना परिवार मुश्किल परिस्थितियों में खींचतान कर चलाना पड़ रहा है। वैसे भी बरसों से देखते आए हैं कि सरकारें महंगाई कम करने के कितने ही दावे क्यों न कर लें, पर अपवादों को छोड़ दें तो किसी वस्तु की बढ़ी हुई कीमतें एक बार ऊपर चढ़ने के बाद नीचे नहीं आती हैं। बढ़ी हुई महंगाई का असर रोज कमा कर खाने वालों पर और मध्यमवर्गीय परिवारों पर अधिक होता दिख रहा है। इसका असर देश की आर्थिक स्थिति पर पड़ेगा ही।
’नरेश कानूनगो, बंगलुरु, कर्नाटक

लोकतंत्र की खातिर

चार राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश में आम चुनाव का बिगुल बज चुका है। मन में कई तरह की उम्मीदें और आशंकाएं जन्म लेने लगी हैं कि पता नहीं चुनाव परिणाम के दिन हमारी पसंद की पार्टी या गठबंधन को बहुमत मिलेगा या नहीं। लेकिन यह डर आखिर क्यों है? शायद डर इस बात का है कि हम जिस दल या गठबंधन को पसंद कर रहे हैं, उसे पसंद करने वाले अन्य लोग क्या उसी संख्या में वोट डालेंगे, जितना उसके विरोध में खड़े दल या गठबंधन को लोग वोट डालते हैं? उदाहरण के लिए दल ‘ए’ को चाहने वाले सौ लोगों में चालीस लोग वोट डालते हैं और ‘ए’ के विरोध में खड़े दल ‘बी’ को चाहने वाले उतने ही अन्य सौ लोगों में से नब्बे लोग वोट डालते हैं। तो क्या चुनी हुई सरकार सही मायने में जनता की सरकार कही जाएगी? फिर दोष किसका कहा जाएगा?

इशारा ऐसे लोगों की तरफ है जो आम दिनों में ड्राइंग रूम में बैठ कर राजनीति पर बहसें तो करते हैं, मगर ऐन चुनाव के दिन टीवी के सामने सोफे में धंसे रह जाते हैं। लोकतंत्र में सही सरकार के चुनाव के लिए सभी तरह के विचारों के नागरिकों का समान अनुपात में योगदान होना चाहिए। सिर्फ बहस में नहीं, वोट डालने में भी। एक आम नागरिक के रूप में मेरा आह्वान है कि सभी तरह के लोग आगे आएं और अपने अधिकार का प्रयोग करके दुनिया के विशालतम लोकतंत्र को सही अर्थों में सच्चा लोकतंत्र बनाएं।
’ज्ञानदेव मुकेश, कुर्जी, पटना, बिहार