‘नौकरियां तो हैं, उन्हें ढूंढ़ें’ (दूसरी नजर, 20 फरवरी) पढ़ा। लेख में उपलब्ध मानवीय और अन्य संसाधनों के सदुपयोग, गुणवत्ता से भरपूर उत्पादकता बढ़ाने के साथ-साथ चिकित्सा, शिक्षा, कृषि, पर्यावरण और इसी तरह अन्य व्यावसायिक क्षेत्रों में प्रशिक्षित मानवीय शक्ति को बढ़ाने पर जोर दिया गया है, ताकि हमारे देश में अच्छी स्वास्थ्य सेवाएं समाज की आखिरी कड़ी तक पहुंच सके, उन्नत कृषि तकनीकी के प्रयोग से गुणवत्ता और उत्पादन में वृद्धि हो सके। इन सबका सबसे बड़ा फायदा हमारे बेरोजगार युवाओं को मिलेगा, क्योंकि जब वे प्रशिक्षित होंगे तो उन्हें काम की कमी नहीं रहेगी।
लेख में यह तर्क बिलकुल सटीक है कि हम आज भी करोड़ों-अरबों की लागत से बनने वाले प्रशिक्षण संस्थानों को प्रशिक्षित मानवीय संसाधनों को तैयार करने का साधन मानते हैं। अमेरिका का यह उदाहरण कि 50 हजार वर्गफुट के संस्थानों में आवश्यकता के अनुसार उच्च प्रशिक्षित डाक्टर और पैरा-मेडिकल स्टाफ तैयार करके अच्छी स्वास्थ्य सेवाएं देश के हर नागरिक को उपलब्ध करवाई जा सकती हैं। मेडिकल संस्थान तो एक उदाहरण मात्र है।
ऐसी ही स्थिति इंजीनियरिंग कालेजों, अध्यापक शिक्षण संस्थानों, जहां सरकारें शिक्षा बजट का एक बड़ा हिस्सा खर्च कर मात्र गिनती के प्रशिक्षित डाक्टर, इंजीनियर, शिक्षक और पैरा-मेडिकल कर्मचारी ही तैयार करती है जो देश की आवश्यकता के हिसाब से ऊंट के मुंह में जीरे के समान है। जब 140 फैकल्टी हमारे देश में मात्र सौ डाक्टर को तैयार करते हैं तो क्या मानव संसाधन का बेहतर प्रयोग करते हुए एक हजार डाक्टर नहीं तैयार किए जा सकते?
अगर मानव संसाधनों और अन्य संसाधनों का उचित प्रबंधन किया जा सके तो रोजगार के अवसरों की कोई कमी नहीं रह सकती। पर आजादी के बाद से आज तक जितनी भी सरकारें बनीं, उनमें ऐसे योजनाकारों का अभाव रहा। सभी सरकारें लकीर की फकीर बन कर ऐसी योजनाएं बनाती रहीं कि बेरोजगारी की समस्या को एक परंपरागत समस्या बनाकर रख दिया है।
सरकार को लेखक के सुझाव पर विचार जरूर करना चाहिए, क्योंकि गैर राजनीतिक सोच से ही बेरोजगारी का स्थायी समाधान निकाला जा सकता है। जब तक बेरोजगारी चुनावी मुद्दा रहेगा, तब तक संसाधनों का अपव्यय होता रहेगा और बेरोजगारी की समस्या भी हमेशा बनी रहेगी।
- राजेंद्र कुमार शर्मा, रेवाड़ी, हरियाणा
मत का महत्त्व
जिस भी घर के बच्चों और नौजवानों को बड़े-बुजुर्ग अच्छी सीख दें, गलत और सही व्यक्ति की पहचान करना सिखा दें, उस घर के बच्चे और नौजवान जिंदगी में कभी पथभ्रष्ठ नहीं होते। ऐसे बच्चे और नौजवान सिर्फ अपने घर के लिए ही नहीं, बल्कि समाज, देश और दुनिया के भी हितैषी होते हैं। वे जिंदगी में ऐसा काम आमतौर पर नहीं करते, जो समाज, देश और दुनिया के लिए उचित न हो।
देश हमारे घर-परिवार जैसा ही है और दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र होना हमारे लिए बहुत गर्व की बात है। लेकिन लोकतंत्र की मर्यादा को बनाए रखना अपना परम कर्तव्य समझना चाहिए, लोकतंत्र की मर्यादा और मजबूती के लिए हमें निर्भय होकर और समझदारी से अपने कीमती मत का प्रयोग हर चुनाव में जरूर करना चाहिए।
अगर देश के बुजुर्ग खुद और अपने परिवार को भी समझदारी से अपने मत का प्रयोग करें तो यह लोकतंत्र के लिए बहुत ही बड़ी बात होगी। देश के हरेक बुजुर्ग, चाहे वे किसी भी धर्म और जाति से संबंधित क्यों न हो, अपने घर के नौजवानों को पहले तो ये समझाएं कि भारत को अंग्रेजों से मुक्त करने और इसे दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र बनाने के लिए देशभक्तों ने कितने दुख-दर्द झेले थे।
नौजवानों को लोकतंत्र का महत्त्व समझाएं और उन्हें मतदान सोच-समझ कर करने के लिए प्रेरित करें। देश में जो बड़े-बुजुर्ग भी धर्म-संप्रदायों की राजनीति के चक्कर में पड़ कर भावनाओं में बहकर या किसी लालच, लोभ में आकर अपने कीमती मत का प्रयोग करते आएं हैं, उन्हें इस बात का विश्लेषण जरूर करना चाहिए कि ऐसा करके उन्होंने देश, प्रदेश में कितना अच्छा बदलाव देखा! इसलिए हर उम्र के मतदाता को हर चुनाव में सोच-समझ कर मतदान जरूर करना चाहिए।
- राजेश कुमार चौहान, जलंधर