अमर्यादित, अप्रिय या बिगड़े बोल के लिए किसी एक दल बल या नेता को दोष देना बेमानी होगी। इस मामले में ऐसा लगता है कि सारे कुएं में भांग घुली हुई है। जिसे जब, जहां, जैसा मौका मिलता है, बिगड़े बोल बोल जाता है। गम तो इस बात का है कि ये बोल मंचों से देश-प्रदेश के महत्त्वपूर्ण पदों की जिम्मेदारी निभाने वाले बोलते हैं।
ऐसे में आम आदमी से हम क्या अपेक्षा कर सकते हैं? कानून की किताबों में ऐसा कोई कानून नहीं है जो इन बेढंगे बोल पर सख्ती से रोक लगा सके। लेकिन हाल-फिलहाल के वातावरण को देखते हुए अब इन बेढ़ंगे बोलों पर रोक लगाने की सख्त आवश्यकता है। कोई भी नेता, मंत्री, जनप्रतिनिधि अप्रिय बोल बोलते हैं तो पांच वर्ष के लिए किसी भी राजनीतिक प्रक्रिया में भाग नहीं लेने का सख्त कानूनी प्रतिबंध होना चाहिए। अन्यथा ये बिगड़े बोल का बेढ़गा ढर्रा रुकने वाला नहीं है।
’हेमा हरि उपाध्याय अक्षत, उज्जैन, मप्र
पंचों की ताकत
सोमवार को अमेरिकी सिनेट द्वारा अड़तालीस के मुकाबले बावन मतों से ट्रंप द्वारा चुनी गर्इं अड़तालीस वर्षीया एमी कोनी बैरेट को सर्वोच्च न्यायालय का जज नियुक्त कर दिया गया। पिछले चार सालों में ट्रंप की पसंद की ये तीसरी जज हैं। अब नौ जजों का पैनल में छह जज ऐसे हैं, जो रूढ़िवादी और श्वेत राष्ट्रवादी विचारधारा के हैं। शायद इसी वजह से ट्रंप को ये बार बार कहते सुना गया है कि चुनावी नतीजा जो हो जाए, लेकिन अगर वे हारे तो मामला सुप्रीम कोर्ट में जाएगा।
इस तरह से क्या वहां की शीर्ष अदालत, संविधान एवं कानूनसम्मत फैसले लेते होंगे या राजनीतिक दबाव में वे काम करते हैं? सबसे बड़ी बात इसे प्रथा माना जाए या कुप्रथा। वहां जो भी एक बार जज चुना जाता है, वो ताउम्र उस पद पर बना रहता है। जबकि अमेरिका का ही निचली अदालतों में ऐसा नहीं है। इस कुप्रथा को बदलने के लिए अधिकांश अमेरिकियों ने हामी भी भर दी है।
’जंग बहादुर सिंह, जमशेदपुर, झारखंड</p>
लोकतंत्र के पक्ष में
चिली में नया संविधान लोगों की लंबे समय की मांग के बाद बनेगा। चिली के अठहत्तर फीसद लोगों ने नए संविधान के पक्ष में अपना वोट दिया। यह संविधान कई संशोधनों के साथ अस्तित्व में आएगा। जब चिली के लोगों को जैसे ही नए संविधान के बारे में पता लगा वे सैंटियागो में इकट्ठे हुए और खुशी मनाना शुरू कर दिया। अठहत्तर फीसद ने तानाशाह आॅगस्टो पिनोचे के तहत 1980 में एक ड्राफ्ट को बदलने के लिए एक नए चार्टर के विकल्प को मंजूरी दी थी। पुराने मसौदे में कई कमियां थीं।
उनमें से एक असमानता को बढ़ावा देने वाला था। उम्मीद की गई है कि नया संविधान इन कमियों को मिटा देगा। चिली के लोगों की बहुत सी मांगे हैं जिनमे प्रमुख है, बेहतर पेंशन, स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा का अधिकार और स्वदेशी लोगों के लिए अधिक अधिकार। आशा है नया संविधान इन मांगों को पूरा करेगा तथा चिली के लोगों की आशाओं पर खरा उतरेगा।
’नरेंद्र कुमार शर्मा, जोगिंदर नगर, हिप्र
डॉक्टरों का दुख
कोरोना महामारी के कठिन समय में डॉक्टर केवल मुश्किलों का सामना ही नहीं कर रहे, बल्कि दहशत में जी रहे हैं। मेरे एक परिचित डाक्टर हिंदुराव अस्पताल में नौकरी करते हैं। उनका कहना है कि कभी भी रात को किसी वजह से अगर नींद खुल जाए तो कोरोना दिमाग में घूमने लगता है और उसके बाद नींद नहीं आती। ‘सबका साथ सबका विकास’ और आम आदमी की बात करने वाली सरकारों के पास फिजूल के विज्ञापनों पर खर्च करने के लिए तो करोड़ों रुपए हैं, लेकिन डॉक्टरों को वेतन देने के लिए नहीं।
भगवान का मंदिर बनवाने के लिए तो पैसे हैं, लेकिन जिन डॉक्टरों को हम भगवान मानते हैं उनको अपना वेतन पाने के लिए भी हड़ताल करनी पड़ती है। कैसी विडंबना है। अब ऐसे हालात में अगर डॉक्टर निजी क्षेत्र में या विदेश में चले जाएं तो ये प्रशासन की नाकामी है। क्या सरकारें इनकी मांगों पर ध्यान देंगी या सिर्फ राजनीति चलती रहेगी?
’चरनजीत अरोड़ा, नरेला, दिल्ली</p>
