लाखों किसान इतनी ठंड में अपने हक के लिए अगर लड़ रहे हैं, तो यह माना जाना चाहिए कि नए कृषि कानूनों में जरूर कुछ ऐसा है जो उनके हितों के खिलाफ है। 26 जनवरी को जो घटनाएं हुईं, उनका उद्देश्य इस आंदोलन को कमजोर करना था। सरकार और किसानों के बीच अब तक ग्यारह दौर की बैठकें बेनतीजा रही हैं।
ऐसा प्रतीत होता है जैसे सरकार भी अपने अड़ियल रुख पर कायम है। जब आंदोलन इतना विशाल रूप ले चुका है फिर भी सरकार किसानों से बात करने के बजाय दिल्ली की सीमाओं को को बंद करने जैसी विवेकहीनता दिखाई जा रही है। सवाल है कि क्या किसान देश के दुश्मन हैं? किसानों के पक्ष में लिखने वालों के ट्विटर अकाउंट ब्लॉक किए जा रहे हैं, आंदोलन की सच्चाई दिखाने वाले पत्रकारों को जेल में डाला जा रहा है।
इससे सरकार की तानाशाही साफ-साफ नजर आती है। किसानों को पानी, बिजली की आपूर्ति बंद कर देने से आंदोलन को दबाया नही जा सकता। ये अन्नदाता हैं जो इस देश का पेट भरते हैं। क्या इनके साथ ऐसा अमानवीय व्यवहार करना उचित है?
’संजू तैनाण, चौबारा,हनुमानगढ़
सेहत पर जोर
संपादकीय- सेहत की फ्रिक पढ़ा। कोरोना महामारी ने सरकार की आंखे खोलने का कार्य किया है। अभी भी पूरी दुनिया इस संकट से जूझ रही है। संतोष की बात तो यह है कि अन्य विकसित देशों की तुलना में भारतीयों को विरासत में मिली मजबूत प्रतिरक्षा क्षमता की वजह से भारत में जनहानि का आंकड़ा कम ही रहा।
केंद्र सरकार ने प्रस्तावित बजट में स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के लिए बजट आवंटन में एक सौ सैंतीस फीसदी कर 2.23 लाख करोड़ रुपए रखे हैं। कोरोना काल में स्वास्थ्य सेवा में कमी को लोगों ने शिद्दत से महसूस किया। अस्पतालों में बिस्तर, दवाइयां, जीवन रक्षक प्रणालियों और चिकित्साकर्मियों की कमी देखी गई।
देश में दस हजार आबादी पर एक सरकारी डॉक्टर और पाँच सौ की आबादी पर एक नर्स का उपलब्ध होना बेहद चिंताजनक आंकड़ा है। ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सालय का घोर अभाव है। लेकिन इन सबके बावजूद हमारे स्वास्थ्यकर्मियों ने पूरी मुस्तैदी और दिलेरी के साथ लोगों की जिंदगी बचाने का मोर्चा संभाला।
आपदा की घड़ी में बड़े-बड़े चमक दमक वाले निजी अस्पताल सिर्फ दिखावे के बन कर रह गए। हमारे वैज्ञानिकों ने कोरोना महामारी पर विजय प्राप्त करने के लिए दो स्वदेशी टीके तैयार कर पुन: अपनी प्रतिभा को प्रमाणित किया है। आज सौ से अधिक देश भारतीय टीके के लिए अर्जी लगा चुके हैं। पूर्णबंदी के दौरान प्रधानमंत्री ने कहा था कि, जान है तो जहान है। लोगों की अनमोल जिंदगी को बचाने के लिए स्वास्थ्य सेवाओं को प्राथमिकता देना एक स्वागत योग्य कदम है।
’हिमांशु शेखर, केसपा, गया