लोकतांत्रिक व्यवस्था में चुनाव एक सामाजिक उत्सव है। जहां वोटर उस उत्सव में रंग भरने का काम करते हैं। उनकी सक्रियता इस महापर्व को सफल बनाती है और एक पूर्ण बहुमत वाली सरकार गठन करने में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करती है। एक मजबूत सरकार ही जनता के हित में कड़े फैसले लेने को स्वतंत्र होती है। लेकिन वर्तमान में बिहार के दूसरे चरण के मतदान में भी वोटरों की शिथिल भागीदारी साफ दिखी। हालांकि अभी तीसरा चरण बाकी है, लेकिन मौजूदा हालात में बिहार में त्रिशंकु सरकार बनने के भी कयास लगाए जा रहे हैं।
बिहार जैसे राज्य में चुनाव का गिरता प्रतिशत, बिहार की प्रत्यक्ष राजनीति आर्थिक-सामाजिक उन्नति के लिए बाधक सिद्ध हो सकती है। इसलिए बिहारवासियों को कोरोना से जरूरी सुरक्षा बरतते हुए अधिक से अधिक मतदान करना चाहिए, क्योंकि लोकतंत्र की असली सफलता तभी है,. जब वोटर अपने मत का अधिकाधिक प्रयोग करें।
’स्वर्ग सुमन मिश्रा, वैशाली, बिहार
सरोकार बनाम साख
टीवी मीडिया के कुछ अतिउत्साहित चेहरों की वजह से मीडिया की जो साख गिरी है, उसे संभालने में शायद लंबा वक्त लगे। पत्रकारिता की थोड़ी बहुत गरिमा प्रिंट मीडिया ने बचा रखी है। जिस मीडिया के ऊपर सवाल पूछने की जिम्मेदारी होती है, जब वही राजनीतिक दलों के प्रवक्ता की तरह टीवी चैनल पर दिखने लगे तो समाज की उपेक्षा लाजिमी है। यह कहना उचित होगा कि जो संगठन पूंजीपतियों पर निर्भर हो जाए, वह अपनी नैतिकता मुश्किल से ही बचा पाता है। फिर उसका मकसद समाज को सच से रूबरू कराना नहीं, बल्कि टीआरपी हासिल करना रह जाता है।
मीडिया सत्ता और समाज के बीच की कड़ी है जो सरकार को समाज के विभिन्न परिस्थितियों से अवगत कराने और दर्पण दिखाने की जिम्मेदारी निबाहता है। मगर कुछ लोगों की वजह से मीडिया को समाज में आज तरह-तरह की नकारात्मक उपमाएं दी जाने लगी हैं। जबकि इसी मीडिया में सही के लिए लड़ने वाले लोग भी मौजूद हैं। सही पत्रकारिता का इतना प्रभाव पड़ता है कि हमारे देश से अंग्रेजों को जाना पड़ा। आजादी के समय में पत्रकारिता ने क्रांतिकारी बदलाव की भूमिका निभाई थी। मीडिया को समाज में आपसी सौहार्द बनाने और जोड़ने का कार्य करना चाहिए, तभी सच्ची देशभक्ति होगी।
’मोहम्मद आसिफ, जामिया नगर, दिल्ली</p>