कई स्थानों पर नदी को प्रदूषण से मुक्त करने की मांग की जाती है जो पर्यावरण की दृष्टि से सराहनीय है। कोरोना काल के दिशानिर्देशों का पालन कर धार्मिक पर्व पर नदियों में श्रद्धालु स्नान, पूजन का कार्य करते हैं। नदियों को प्रदूषण से मुक्त रखने के लिए कई स्थानों पर सामाजिक संस्थाए कार्य कर रही हैं, ताकि सबको साफ पानी मिल सके। कई नदियों के तट पर स्थिति रिहाइशी इलाकों के रहवासी अपने घर के निकले गंदे पानी का निकास घर के पीछे करते हैं और सोख्ता बनाते हैं। साथ ही जलशोधन संयंत्र की योजना बनाते है, ताकि गंदा पानी स्वच्छ जल में न मिल पाए। वर्तमान में ऐसी ही प्रक्रिया को अपनाने की आवश्यकता है, ताकि सीधे तौर पर गंदा पानी नदियों में न मिल पाए।

नदियों को स्वच्छ बनाने के लिए नागरिकों को आगे आना चाहिए, जिससे नदियों के जल को प्रदूषण से मुक्त रखने में हर व्यक्ति अपनी भूमिका सही तरीके से अदा कर सके। देखा जाए तो तालाबों, जल परियोजनाओं, कुएं, बावड़ियों और नदियों को प्रदूषण से मुक्त करने का दायित्व निभाने वाली संस्थाओं को पुरस्कृत कर उन्हें शासन से सहायता मुहैया कराया जाना चाहिए, ताकि नदियों के शुद्धिकरण से सभी को शुद्ध जल का लाभ मिल सके और जल संक्रमण से होने वाली बीमारियों से निजात मिल सके। स्वच्छता का संदेश और जागरूकता लाना हर इंसान का कर्तव्य है, क्योंकि स्वच्छता से ही बीमारियों और प्रदूषण से मुक्त रहा जा सकता है।
’संजय वर्मा ‘दृष्टि’, मनावर, धार, मप्र

सुविधा के जोखिम

आज इस आभासी दुनिया में इंटरनेट का प्रचलन एक मजबूत आवश्यकता के रूप में देश -दुनिया में फैल चुका है। यह तो सुविधा प्रदान करता है, लेकिन इसकी काफी बुराइयां भी हैं, जो इंटरनेट के नकारात्मक नतीजों को सामने रखता है। इंटरनेट से हमें जिंदगी को जरूरी सुविधाएं भी मिल रही हैं, चाहे वह बैंकिंग हो या ई-कॉमर्स व्यवसाय, शादी ब्याह, होटल व्यवसाय, नाच-गाने का क्षेत्र, शिक्षा का क्षेत्र, चिकित्सीय संसार या किसी उत्सव का समागम- सभी जगह इसका व्यवहार आज आम बात हो गई है। इससे हमें सब सुविधाएं प्राप्त होती रहती हैं।

इस व्यवस्था से हम सबकी अनावश्यक गतिविधियां भी कम हो चुकी हैं। इससे समय और काल की भी भारी बचत होती है। लेकिन इंटरनेट के दुरुपयोग की भी एक लंबी सूची हम सबके सामने तैयार खड़ी दिखाई देती रहती है। बहुत सारी असुविधाओं के साथ-साथ महिलाओं के खिलाफ यौन अपराधों में इंटरनेट की गतिविधि अत्यधिक वृद्धि एक महत्त्वपूर्ण दोष के रूप में देखा जा सकता है। कई मौकों पर यह देखा जा रहा है कि यह महिलाओं को असहनीय पीड़ा प्रदान करने वाला अस्त्र बन गया है। यह सुंदर व्यवस्था है, पर इसे व्यवस्थित रूप से प्रयोग में लाने की जरूरत है।
’अशोक, पटना, बिहार