ओलंपिक समाप्त होने के बाद भारतीय एथलीट घर लौटे। उन्हें सम्मानित किया गया और उनकी मदद की गई। सम्मान किया भी क्यों न जाए! आखिर भारत ने इस बार अपने अब तक के प्रदर्शन से ज्यादा पदक कमाए। आगे सरकारें एथलीटों को और सम्मान देंगी और उनकी मदद करेंगी। लेकिन प्रश्न यह है कि मदद ओलिंपिक से पहले क्यों नही कि गई? अगर ऐसा होता तो एथलीटों को जो संघर्ष और कष्ट झेलने पड़े, वे शायद उन्हें न झेलने पड़ते।

जिन कारणों के चलते वे पदक से दूर रहे, शायद वे कारण उत्पन्न ही न होते। अगर सहयोग ओलंपिक से पहले मिला होता तो शायद भारत ज्यादा पदक ला पाता। इसके बावजूद देश में किसी भी सरकार का एथलीटों को धनराशि से सम्मानित करना सराहनीय है। लोगों और सरकारों का एथलीटो का और सहयोग करना भारत को और पदक दिला सकता है, पर ध्यान इस बात का रखना होगा कि मदद प्रतिस्पर्धा से पहले की जाए। इन मायने में ओड़ीशा सरकार का हॉकी टीम का प्रायोजक बनना और बिरसा मुंडा अंतरराष्ट्रीय हॉकी स्टेडियम बनवाना सराहनीय है। आगे यह ध्यान रखना चाहिए कि हमारे खिलाड़ियों को अगर कोई सहमिले तो वह विलंबित न हो।
’हर्ष गिरि, लखनऊ, उप्र