राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलट का आमने-सामने आना कहीं न कहीं कांग्रेस की कमजोरी को दर्शाता है। जिस प्रकार कांग्रेस के बागी राजस्थान से विधायक और पूर्व कैबिनेट मंत्री भारत सरकार सचिन पायलट के बयान सामने आ रहे थे, उससे कहीं न कहीं लग रहा था कि वह अपने ही षड्यंत्र में फसते जा रहे हैं। वे यह भी जानते हैं कि जो स्थान उनका कांग्रेस में है, वह बीजेपी में कभी नहीं हो सकता है। इसका ताजा उदाहरण उनके मित्र ज्योतिरादित्य सिंधिया का है। आज सिंधिया का जो महत्त्व कांग्रेस में था, वह भाजपा में प्रतीत नहीं होता है।
पायलट को कांग्रेस द्वारा उनको ज्यादा तवज्जो न देने का कारण यह है कि पायलट प्रदेश अध्यक्ष पद पर रहते हुए भी विधायकों के एक बड़े गुट को अपने समर्थन में नहीं कर पाए, जिससे वे सरकार को झटका देने में अक्षम हैं। पायलट को मान लेना चाहिए कि जो मध्य प्रदेश की सियासत को वह दोहराना चाहते थे, वह उनके बस की बात प्रतीत नहीं है।
उन्होंने इस वास्तविकता को स्वीकार नहीं किया। नतीजतन, आज वे जिन परिस्थिति में चले गए हैं, उन्होंने सोचा भी नहीं होगा। अब शायद भाजपा में शामिल होने में भी उनके सामने कई तरह की बाधाएं पेश आएं और अगर वे वहां चले भी गए तो वहां उनका सम्मान कितना बच पाएगा, यह कहना मुश्किल है।
’शशांक वार्ष्णेय, दिल्ली विवि
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