आज हम ‘परफेक्ट’ यानी परिपूर्ण बनने की चाह में खुद को खोते जा रहे हैं। इसकी वजह से हम गुस्सैल व्यवहार लिए घूम रहे हैं। परिपूर्ण होने की इच्छा प्रतियोगिता की स्थिति उत्पन्न करता है। यों अगर हमारा मन खुश और आनंदित रहता है तो संपूर्णता पर ध्यान नहीं जाता, लेकिन अगर परिपूर्णता नहीं मिल पाती तो खुशी के स्रोत हमें प्रसन्न नहीं कर पाते। वैसे दुनिया में कुछ भी समय के मुताबिक परिपूर्ण या संपूर्ण नहीं है। सभी में किसी न किसी प्रकार की त्रुटि रह ही जाती है। हमारी मानसिक प्रवृत्ति है कि हमें किसी के अंदर कमी या अपूर्णता जल्दी दिखाई देती है, फिर हम उसको उसके ही मुताबिक अलग श्रेणी में रख देते हैं।
परिपूर्णता की इच्छा इंसान को गंभीर बना देता है और गंभीर लोग दुनिया से अलग रहने लगते हैं। इसी कारण गंभीर इंसान को दुनिया वाले घमंडी भी समझ लेते है। ओशो ने कहा है कि अति गंभीरता एक बीमारी है। परिपूर्णता की इच्छा हमें छोटी-छोटी खुशियां व उत्सव में भी गंभीरता की ओर धकेल देता है। कई बार इससे निराशा भी पैदा होती है।
बाहरी दुनिया परिपूर्णता की इच्छा को जगाती है। और परिपूर्णता तभी संभव है जब हम अपने अंदर की यात्रा करें। लेकिन व्यक्ति अपने अंदर की यात्रा करने से बचता है, क्योंकि वह सच्चाई का सामना नहीं करना चाहता। वैसे हमें जीवन के हर पल को खुल कर जीना चाहिए। गंभीरता भी जरूरी है, लेकिन इसके लिए हम अपने छोटी-छोटी खुशी को नजरअंदाज नहीं कर सकते।
’रिशु झा, फरीदाबाद, हरियाणा
खर्च और कीमत
दिन-प्रतिदिन बदलते भारत की आर्थिक स्थिति से लोग काफी प्रभावित हो रहे हैं। खासकर मध्यवर्गीय परिवार इसकी मार से बुरी तरह परेशान हैं। सरकार के द्वारा निर्धारित की गई ऐसी कई तमाम चीजें हैं, जिसे शहर के साथ-साथ हर ग्रामीण क्षेत्र में भी प्रभाव डाला जाता है। लेकिन शहर में चीजें इस तरह से बढ़ा दी जाती हैं, मानो वहां से ज्यादा टैक्स वसूलना हो। हालांकि अब गांव और शहरों में वैसी वस्तुओं की कीमत में ज्यादा फर्क देखने को नहीं मिलता, जिन पर अधिकतम खुदरा मूल्य दर्ज होता है।
महंगाई का असर शहरों में ज्यादा देखने को मिलता है, लेकिन यह भी सच है कि ग्रामीण इलाकों में लोगों की औसत आमदनी काफी है। शहरों में घरों के किराए के मामले में मकान मालिकों की मर्जी चलती है और आम लोगों को यह सब झेलना पड़ता है। अगर एक यूनिट बिजली की कीमत में पांच रुपए का उछाल आया तो शहर में सीधे तीन गुने दाम से हमें प्रभावित कर दिया जाता है। इस चीज की वजह से न जाने कितने लोग परेशान हो जाते हैं, शहर में रह नहीं पाते। यह नीतिगत फांक है, जिसमें आम लोग पिसते हैं, वे गांव के रहने वाले हों या शहर। इस अनियमितता की सजा किसी को नहीं मिलती।
’सचिन आनंद, खगड़िया, बिहार</p>