‘बहस की अहमियत’ (संपादकीय, 17 अगस्त) पढ़ा। उच्चतम न्यायालय के उच्चतम न्यायाधीश एनवी रमण ने बिना बहस के पास होने वाले विधेयकों के मसले पर पर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि बिना कानून के जानकारों या बिना बुद्धिजीवियों की मौजूदगी में और बिना बहस के कानून पास हो रहे हैं। यह देश के लिए चिंता का विषय और न्यायपालिका के ऊपर बोझ बढ़ने जैसा है। दरअसल, सदन में बहस के बिना पारित होने वाले कानून में धरातल पर खामियां दिखती हैं, जिसका देश की जनता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

जमीनी स्तर पर कानून का दुरुपयोग होता है। जस्टिस रमण ने एक उदाहरण देकर समझाया कि किस तरह से औद्योगिक विवाद कानून संशोधन विधेयक पर सदन में बहस में तृणमूल कांग्रेस से जुड़े सांसद ने इसके दुष्प्रभाव से होने वाले परिणामों को उजागर किया। न्यायाधीश ने चिंता जताई कि यहां यह भी साफ नहीं हो पाता कि किसी कानून को लाने के पीछे मंशा क्या है। इसका परिणाम होता है कि पुलिस द्वारा संबंधित कानून की न समझ होने पर उल्टी-सीधी धाराएं लगा दी जाती हैं, जिससे व्यक्ति और न्यायपालिका, दोनों का समय नष्ट होता है।

बिना बहस के पारित हुए कानून की स्थिति न्यायालय के सामने पानी के बुलबुले की तरह साबित होता है। आए दिन सदन से पास हुए कानून को चुनौती देने वाली याचिकाएं न्यायालय के समक्ष आती रहती हैं, जिससे न्यायालय और व्यक्ति का समय नष्ट होता है। सदन में सत्तापक्ष की तरफ से पेश किए कानून को जबरन पास करने की वजह से विपक्ष द्वारा स्वीकार न करने की दशा में अवांछित और कई बार बेहद अफसोसनाक विवाद की स्थिति पैदा होती है। सवाल है कि आज कानून पारित करने की इतनी हड़बड़ी और होड़ क्यों मची हुई है!

देश ने कोरोना का वह दौर भी देखा कि जहां लोग अपनों की उखड़ती सांसों को जोड़ने की जद्दोजहद में लगे थे, वहीं सरकार बिना बहस किए विधेयक पास कर रही थी। इसके नतीजे में आज भी किसान धरने पर बैठा हुए हैं। ऐसी परिस्थिति तो राजतंत्र में रहती हैं। मगर लोकतांत्रिक प्रक्रिया में ऐसी स्थिति कतई नहीं आनी चाहिए। ऐसा लगता है कि केवल नाम ही लोकतंत्र का बचा है। यह देशहित में नहीं है। अगर अच्छे लोग राजनीति में सक्रिय नहीं हुए तो ऐसे ही कानून पर कानून बनते रहेंगे और उन पर कोई विचार-विमर्श नहीं होगा कि उनका असर क्या होने वाला है। जनता को भी आपराधिक छवि वाले प्रत्यशियों को संसद तक जाने से रोकने के लिए अपने मतों का सही उपयोग करना चाहिए।
’मोहम्मद आसिफ, जामिया नगर, दिल्ली</p>