एक सौ तैंतालीस करोड़ आबादी वाले चीन में अपने नागरिकों की भूख मिटाने के लिए खेती से पर्याप्त अनाज पैदा न हो पाने के कारण चीन हर वर्ष लगभग चार सौ करोड़ किलोग्राम चावल का आयात करता है। चावल आयात करने के लिए चीन अब तक थाईलैंड, वियतनाम, म्यांमा और पाकिस्तान जैसे देशों पर निर्भर था, लेकिन कोरोना संकट के कारण अब दुनिया के कई देशों ने चावल के निर्यात पर रोक लगा दी है। पिछले एक वर्ष में चीन ने अमेरिका से चालीस हजार करोड़ रुपए से अधिक का अनाज आयात किया है, मगर इस समय अमेरिका और चीन के बीच संबंध अच्छे न होने के कारण चीन को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।
भारत दुनिया में चावल का सबसे बड़ा निर्यातक है और चीन चावल का सबसे बड़ा आयातक। एक ओर चीन दुनिया भर से चावल का आयात कर रहा है, लेकिन उसके सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने इस वर्ष चावल की शानदार पैदावार होने का दावा किया है। यानी चीन महज प्रचार के द्वारा अपने देश के अनाज संकट को छिपाना चाहता है। चीन में चावल की खपत बहुत है, क्योंकि चीनी लोग अपने भोजन में चावल या उससे बने चीनी नूडल्स का प्रयोग अधिक करते हैं। इसलिए चीन अधिक मात्रा में चावल का आयात करता है।
दरअसल, भारत ने चीन को अनाज के मोर्चे पर भी झुका दिया है और इसका पूरा श्रेय हमारे भारतीय किसानों को जाता है। हमारे देश में ‘जय जवान जय किसान’ का नारा बिल्कुल सार्थक है, क्योंकि हमारे जवान सीमा पर डट कर देश की सुरक्षा करते हैं तो हमारे किसान देश के खेतों में सर्दी, गर्मी और बरसात को सह कर दिन-रात कड़ी मेहनत करके कम से कम लागत में अधिक से अधिक अनाज उत्पन्न करते हैं और देश को मजबूत बनाते हैं।
इन्हीं किसानों के दम पर भारत दुनिया भर में चावल और अन्य अनाजों का इतना अधिक निर्यात कर पाता है और आर्थिक रूप से मजबूती प्राप्त कर पाता है। साथ ही दुश्मन देश के सामने भी अपना सिर गर्व से ऊंचा रख पाता है। वही किसान आज सड़कों पर उतर कर आंदोलन कर रहे हैं। लेकिन मुद्दे पर सरकार और किसान, दोनों पक्षों को भ्रमित या दिशाहीन होने की जरूरत नहीं है। इस मसले पर किसानों के हित में किसी ठोस फैसले तक पहुंचा जाना चाहिए।
’रंजना मिश्रा, कानपुर, उप्र
प्रेम की राह
कहते है प्रेम सुख की दूसरी अनुभूति है, जिसमें हर व्यक्ति खुशी का अनुभव करता है। लेकिन मैं आजकल के लोगों को जब देखती हूं तो आश्चर्यचकित हो जाती हूं कि जहां प्रेम सुख का प्रतीक है, जिसका होना जीवन को एक नया आधार प्रदान करता है, वहीं लोग इससे व्यथित और परेशान क्यों हैं और आजकल यह लोगों की पीड़ा का कारण क्यों बन रहा है।
जहां बारह वर्ष के बच्चे का मन किताबों की दहलीज पर होना चाहिए, वहीं उसका मन प्रेम से मिले दर्द को संभालने में लगा है। अजीब बात है कि जहां इस उम्र में लोग खुद को नहीं संभाल पाते, वहां बच्चे प्रेम को संभाल रहे हैं और उसको परिभाषित भी कर रहे हैं।
उनकी परिभाषाओं को सुन कर मेरे कान के पर्दे स्थिर से होते हैं कि प्रेम के विस्तार और व्यापकता के बीच मैं आज तक इसका एक अंश न समझ पाई और मेरे पीछे ओर मेरे साथ की पीढ़ी इसको जी रही है। पर उनके प्रेम का तरीका अजीब है, जिसे देख कर मुझे यही लगता है कि वह उनके लिए भले प्रेम हो, पर वास्तव में वह प्रेम नहीं, बल्कि समय की बबार्दी करने वाला एक साधन है।
जिस प्रेम को वे परिभाषित करते हैं, वह शायद दर्द का कारण इसीलिए भी बन रहा है कि वह प्रेम को अनुभव नहीं कर रहे, बल्कि एक संसाधन के तौर पर उसका उपयोग कर रहे हैं, जिसका एक निश्चित मुकाम पर पंहुचने के बाद नाकाम होना जाहिर है।
हाल ही में एक अजीब किस्सा आंखों के सामने था, जहां प्रेम रूपी वाहन पर एक व्यक्ति इस प्रकार सवार था, मानो यही उसके लिए सर्व सुखदायी है। इसकी चकाचौंध उस पर इस कदर हावी थी कि उसके आपपास का वातावरण उसके लिए शून्य था, पर कुछ समय बाद उसके इस प्रेम रूपी वाहन की मशीन में शायद कुछ खराबी आ गई और वह अपने सर्व सुखदायी सुख से दुख की ओर बढ़ने लगा। उसके इस बदलते स्वभाव ने कई सवाल जेहन में जगा दिए हैं, पर इनके जवाब की अभिलाषा नहीं। इसका जवाब वही दे सकता है जो इस वाहन के स्पर्श में न होकर प्रेम को समझता हो और वह स्वयं इस वाहन की लोकप्रियता की वजह खोज रहा हो।
’प्रियांशी सिंह, स्टडी हॉल कॉलेज, लखनऊ</p>

