children is future of Nation बच्चों की यही पीढ़ी देश का भविष्य तय करती है। लेकिन आज हम लगातार देख रहे हैं कि हमारे बच्चे ऐसे संकटों का सामना कर रहे हैं जिससे उनका उज्ज्वल भविष्य खतरे में पड़ता जा रहा है। बाल मन पर जिस तरह से मानसिक विकृति और नकारात्मकता हावी होती जा रही है, उसका नतीजा हिंसक गतिविधियों के रूप में देखने को मिल रहा है।
छोटे-छोटे बच्चे और किशोर जिस तरह से जघन्य अपराधों में लिप्त होते जा रहे हैं, वह गंभीर चिंता का विषय है। जाहिर है, सोशल मीडिया, इंटरनेट और इलेक्ट्रानिक गैजेट के तेजी से बढ़ते इस्तेमाल के दुष्प्रभाव हैं ये सब। यही कारण है कि बच्चों में नैतिकता की गिरावट साथ ही आदर्श व्यवहार की कमी बड़े रूप में देखी जा सकती है।
देखा जाए तो इसका एक कारण पश्चिमी संस्कृति का असर भी है जिसने उपभोक्तावाद को तेजी से बढ़ाया है। बच्चे आज जो स्कूली शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं, उसमें सबसे ज्यादा जोर सिर्फ इसी पर रह गया है कि कैसे भी करके अधिक से अधिक नंबर लाइए, अव्वल आइए और प्रतिस्पर्धा के बाजार में शामिल हो जाइए। भले नैतिक जीवन चौपट हो जाए, इसकी कोई चिंता नहीं।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने लगातार इस बात पर जोर दिया कि हमारी शिक्षा नैतिकता से युक्त हो, हम ऐसी पीढ़ी तैयार करें जो केबल अंकीय शिक्षा पर शिक्षित ना होकर वास्तविक रूप से समाज राष्ट्र, विश्व के लिए तैयार हो, जिसमें सेवा भाव, आदर-सम्मान की भावनाएं प्रबल हों। लेकिन इन बच्चों के लिए पहली समस्या बड़े रूप में जो है वह है कि इनका मोबाइलीकरण हो जाना।
अत्यधिक मोबाइल इस्तेमाल से बच्चों में अवसाद और निराशा तेजी बढी है। बच्चे आभासी दुनिया को ही वास्तविक दुनिया समझ बैठे हैं। साथ ही इनको ई-स्पोर्ट के चलते अन्य शारीरिक बीमारियां भी देखने में मिल रही हैं। इसके अलावा इंटरनेट पर फैली अश्लीलता इनके मन मस्तिष्क को को दूषित कर रही है। इसलिए अभिभावकों को ध्यान देना होगा कि बच्चे इंटरनेट और मोबाइल का उपयोग कितना और किस मकसद से कर रहे हैं। अगर समय रहते इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो समाज के लिए यह किसी आपदा से कम नहीं होगा।
दूसरी समस्या है बच्चों में नशे की बढ़ती प्रवृत्ति। हुक्का, सिगरेट, शराब, गुटका इत्यादि का सेवन जिस तेजी से बच्चों को अपनी गिरफ्त में ले रहा है, वह खतरनाक है। इससे इनके स्वास्थ्य पर तो प्रभाव पड़ ही रहा है साथ ही इनकी आर्थिक, मानसिक, पारिवारिक, सामाजिक स्थिति पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। छोटी-छोटी बातों पर चिड़चिड़ापन और हिंसक होना इन्हीं सबका नतीजा है। बच्चों को ऐसे संकटों से बचाना है तो समाज और परिवारों को अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी।
सौरव बुंदेला, भोपाल।
सही मायने में आरक्षण
माननीय सर्वोच्च न्यायालय की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने 103वें संविधान संशोधन को बरकरार रखते हुए इसे कल्याणकारी राज्य द्वारा आर्थिक रूप से पिछड़े यानी ईडब्लूएस वर्ग के पक्ष में की गई एक सकारात्मक कार्रवाई (एफर्मेटिव एक्शन) के रूप में इंगित किया है। न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि आरक्षण न केवल सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों को समाज की मुख्य धारा में शामिल करने के लिए है, बल्कि आर्थिक रूप से वंचित वर्ग के लिए भी महत्त्वपूर्ण है। यह एक ऐसा साधन है जिसके माध्यम से सरकार समावेशी दृष्टिकोण को सुनिश्चित करती है।
किंतु ध्यान देने योग्य बात यह है कि सच्चे अर्थों में समानता का लक्ष्य तभी प्राप्त किया जा सकेगा जब आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग एवं संपन्न वर्ग के मध्य अवसर की असमान दूरी को पाटने के लिए शैक्षणिक संस्थाओं और सरकारी नौकरियों हेतु आयोजित परीक्षाओं में अवसरों तथा आयु सीमा के स्तर पर बढ़ोत्तरी का लाभ भी प्राप्त हो सके, ताकि वह तबका भी अपने पिछड़ेपन से हुए नुकसानों की भरपाई कर सके और मुख्य धारा से जुड़ सके।
लोकेश चंद्र तिवारी, दिल्ली।