हाल ही में ‘लोकतंत्र सूचकांक 2020’ जारी किया गया है, जिसमें भारत को तिरेपनवां स्थान प्राप्त हुआ है कुल एक सौ सड़सठ देशों में। यानी भारत पिछले वर्ष की तुलना में दो स्थान नीचे लुढ़क गया है। विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश भारत जो अब शीर्ष पचास देशों में भी शामिल नहीं है, यह एक संवेदनशील मुद्दा है। 2014 में भारत सत्ताइसवें नंबर पर था। लेकिन इतने कम समय में इतनी अधिक गिरावट दर्ज की गई है।
यह सूचकांक लंदन स्थित इकोनॉमिस्ट इंटेलीजेंस यूनिट के द्वारा जारी किया जाता है। उसने भारत के फिसलने के दो कारण महत्त्वपूर्ण बताए हैं। पहला, नागरिकों की स्वतंत्रता का हनन, और दूसरा, भारत देश मे धर्मनिरपेक्षता पर चोट पहुंचाना। लोकतंत्र में धर्म का प्रभाव अधिक हुआ है। दोनों ही कारण को वर्तमान समय में देखा जा सकता है कि किस तरह से और किन-किन स्तरों पर नागरिकों के अधिकारों का हनन किया जा रहा है।
संविधान की प्रस्तावना में लिखा गया है कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है, जो किसी भी धर्म को विशेष महत्त्व नहीं देता और जिसके समक्ष सभी धर्म समान महत्त्व के हैं। लेकिन वर्तमान समय में धर्म लोकतंत्र पर हावी होता जा रहा है। यह ध्यान रखना चाहिए कि लोकतंत्र का कमजोर होना तानाशाही के रास्ते साफ होने का सूचक होता है। भारत को हर हाल में इससे बचना चाहिए, तभी विश्व में इसकी प्रतिष्ठा बची रहेगी।
’संजू तैनाण, हनुमानगढ़, राजस्थान</p>
इंसानियत की जगह
देश की वित्तमंत्री निर्मला सीतारामण ने कोरोनाकाल के बाद जो देश का बजट पेश किया है, उसे लेकर देश की शिक्षित और जागरूक तबकों के बीच चिंता पैदा हुई है। कई लोगों का कहना है कि इस वजह से देश के साधारण और गरीब परिवारों के घर में अंधेरा छा जाने की आशंका पैदा हुई है।
दूसरी ओर कई लोग मानते हैं कि इस बजट से देश के गरीब लोग गरीब ही होते जाएंगे और अमीर लोग और भी अमीर ही होते जाएंगे। लेकिन हम एक देश के साधारण नागरिक होने के खातिर केंद्र सरकार से यही चाहते हैं कि सरकार जिस भी बजट को अंतिम रूप दे, वह साधारण जनता के जीवन को ध्यान में रखते हुए तैयार करें, ताकि बाद में इसका बुरा प्रभाव देश की क्षमता पर न पड़े।
अगर अमीरों को और अमीर बनाने के रास्ते पर बढ़ा जाएगा तब इंसानियत कहां रहेगी! और बिना इंसानियत के भारत को दुनिया में किस रूप में देखा जाएगा?
’चंदन कुमार नाथ, गुवाहाटी, असम</p>