प्रधानमंत्री ने 2024 तक भारत को पांच लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का लक्ष्य तय किया है। इसके लिए विभिन्न क्षेत्रों में जरूरी कौशल से लैस श्रम की आवश्यकता होगी। कौशलयुक्त श्रम के जरिए विकास दर की रफ्तार तेज की जाएगी। भारत में दुनिया के सबसे युवा आबादी है। आज बड़ी चुनौती युवा आबादी को फायदे में तब्दील करने की है। इसके मद्देनजर सभी के लिए शिक्षा जरूरी है। इसके तहत उच्च शिक्षा का विस्तार और ज्यादा से ज्यादा छात्र-छात्राओं को आर्किटेक्चर, कानून, मेडिकल, इंजीनियरिंग और अन्य खास कोर्स में दाखिला दिलवाया जा सकता है।

इसके अलावा, शुरुआती स्तर पर रोजगार के लिए कौशल विकास है। इसके तहत वैसे लोगों को रोजगार मुहैया कराया जा सकता है, जो पढ़ाई कर रहे हैं या पढ़ाई पूरी कर चुके हैं। तीसरी चीज कौशल में बढ़ोतरी है। वैसे लोगों को नए कौशल लैस करना और उनका कौशल बेहतर करना जो शिक्षित है, काम कर रहे हैं या काम कर चुके हैं और नए कौशल के अभाव में रोजगार नहीं मिल पा रहा है। एनएसएस रिपोर्ट 2011-12 के आधार पर भारत के कुल कार्यबल में सिर्फ 2.3 फीसद के पास संगठित क्षेत्र से जुड़ी कौशल का प्रशिक्षण है।

वित्त वर्ष 2009 में राष्ट्रीय कौशल विकास नीति बनाई गई तो इस तरह के प्रशिक्षण के लिए शुरुआती कदम उठाए गए। इसमें वित्त मंत्रालय, भारत सरकार के तहत राष्ट्रीय कौशल विकास फंड और राष्ट्रीय कौशल विकास निगम की स्थापना की गई। वित्त वर्ष 2013 में राष्ट्रीय कौशल विकास प्राधिकरण और राष्ट्रीय कौशल योग्यता फ्रेमवर्क की स्थापना हुई। राजग सरकार के पहले कार्यकाल में इस संबंध में कोशिश तेज कर इन अभियानों पर ध्यान केद्रित किया गया। पिछले 5 साल में व्यापक स्तर पर कौशल विकास कार्यक्रम को लागू किया गया।

कौशल से जुड़ा जो पारिस्थितिकी तंत्र तैयार किया गया है, वह ऐसी कंपनियों की जरूरतों को भी पूरा कर सकता है, जिन्हें सही लोगों की नियुक्ति में मुश्किल पेश आती है। संबंधित रोजगार के लिए लोगों में उचित योग्यता विकसित कर, इसके लिए मंजूरी हासिल कर और सही व्यक्ति के प्रशिक्षण यानी कौशल और भर्ती सुनिश्चित करने के लिए प्रशिक्षण साझेदार के साथ काम कर इस तरह चुनौतियों से निपटा जा सकता है। जब देश की युवा कौशल से युक्त होंगे तो अर्थव्यवस्था को बढ़ाने में अपना अमूल्य योगदान देंगे।
’सूर्यभानु बांधे, रायपुर, छत्तीसग