हाल में हुए जलवायु सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन का मुद्दा जोरदार ढंग से उठाया गया। सभी देशों के प्रतिनिधियों ने कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने की बात कही। यानी जितना कार्बन उत्सर्जित करना है उतना ही अवशोषित किए जाने हेतु वातावरण तैयार करना है। हमारे प्रधानमंत्री ने भी इस संबंध में अपनी कई रणनीतियां इस सम्मेलन के समक्ष रखीं। देखा जाए तो अब सारे देश इस वैश्विक समस्या के खिलाफ एकजुट हो रहे हैं। मगर आमजन का सहयोग कहीं दिख नहीं रहा। मसलन, भारत में ही कई लोग दीपावली पर पटाखों के प्रतिबंध के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं, तो कई लोगों ने पिछले हफ्ते क्रिकेट में पाकिस्तान की जीत पर पटाखे जला कर जश्न मनाया। लोगों की इस असहयोग वृत्ति को लेकर हम कार्बन तटस्थता के लक्ष्य को कैसे हासिल करेंगे, सोचने का विषय है।
’दिनेश शाह, बैढ़न, सिंगरौली (मप्र)
बच्चों का दर्द
बचपन हर किसी के जीवन का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा होता है। बच्चों के बीच जाति धर्म और नस्ल की कोई दीवार नहीं होती। बच्चे उन्मुक्त होकर खेलना चाहते हैं, लेकिन आज बच्चों के खेलने के मैदान विलुप्त होते जा रहे हैं। आजकल हर जगह निजी स्कूल भरे हुए हैं, लेकिन शायद ही किसी विद्यालय के पास खेल का मैदान है। खेलने की जगह पर आज बड़े-बड़े भवन बन गए हैं। बच्चों के परंपरागत खेल, क्रिकेट, फुटबाल, लुकाछिपी, कबड्डी, पतंगबाजी आदि बंद हो गए हैं।
आजकल माता-पिता भी यही चाहते हैं कि बच्चे अधिकांश समय शांतिपूर्वक घर में रहें। बच्चों का बचपन आज इनडोर गेम्स, टीवी और मोबाइल में सिमटता जा रहा है। इससे बच्चों का शारीरिक विकास अवरुद्ध हो रहा है। बच्चों में अकेले रहने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। वीडियो गेम्स और टीवी की लत से बच्चों में नकारात्मक भावना बढ़ती है। हिंसात्मक टीवी गेम्स देखने से छोटे-छोटे बच्चे भी आज स्कूल में अपराध कर बैठते हैं। हमें बच्चों का बचपन बचाना होगा। बच्चों के लिए समाज और सरकार को खेल का मैदान उपलब्ध कराना चाहिए। बच्चे ही देश का भविष्य हैं। भविष्य की रक्षा करना उन्हें संवारना हर नागरिक का धर्म है।
’हिमांशु शेखर, केसपा, गया