जब भी किसी पुस्तक का लोकार्पण होता है, अक्सर आपने देखा होगा कि मंच पर वह पुस्तक पांच से लेकर ग्यारह लोगों के हाथों में होती है। अक्सर उन सभी लोगों को प्रकाशक या लेखक उस पुस्तक को बिना कोई राशि लिए भेंट करता है। आजकल पुस्तकों की बिक्री को देखते हुए मैं यहां एक निवेदन करना चाहूंगा कि मंच पर आसीन ऐसे सभी लोगों को उस पुस्तक का मूल्य प्रकाशक या लेखक को अदा करना चाहिए। प्रतिष्ठित लोग ही अगर पुस्तक नहीं खरीदेंगे तो फिर और लोग क्यों खरीदेंगे? न जाने क्यों, हमारे यहां समर्थ लोगों को ही सब कुछ मुफ्त में मिलने लगता है! इस परंपरा को आज की परिस्थितियों में समाप्त किया जाना चाहिए।