भारी बरसात और बाढ़ की वजह से देश का एक बड़ा हिस्सा मुसीबत में पड़ गया है। लाखों लोगों का जीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। भले ही सरकार की ओर से कहने के लिए राहत कार्य जारी है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और है। बड़े स्तर पर नुकसान हो रहा है। कई लोगों की मृत्यु हो गई और अरबों रुपए का आर्थिक नुकसान भी हुआ है। भरपूर मानसून के कारण हर बार असम, बिहार, पश्चिम बंगाल और कई अन्य राज्यों में भी भारी नुकसान होता है। लेकिन बाढ़ से निपटने के मामले में सबसे बड़ी समस्या यह है कि बाढ़ का कारण बनने वाली नदियां एक से अधिक देशों से जुड़ी हुई हैं, जिस कारण यह मामला बेहद पेचीदा हो गया है।
इस बीच दो देशों के बीच किसी तरह का विवाद खड़ा होने के स्थिति में इसका खमियाजा आम लोगों को भुगतना पड़ता है। आमतौर पर हर देश चाहता है कि वह दूसरे देश पर दबाव बनाने के लिए प्राकृतिक आपदाओं के दौरान सहयोग करने से बचे। ऐसा करना मानवता के खिलाफ और संवेदनहीनता का ही उदाहरण है। प्राकृतिक आपदाओं का मामला जहां दो या दो से अधिक देशों के साथ जुड़ा होता है, उसके निपटारे के लिए अंतरराष्ट्रीय नीति और नियम बनने चाहिए।
’मधु कुमारी, बोकारो, झारखंड</p>
सतर्कता की जरूरत
आने वाले समय में बादलों की मार से सावधान रहें। हर साल यह हिमाचल प्रदेश के कई हिस्सों में होता हैं। कई लोग इशामें लापरवाही बरत कर अपनी जान, मकान, संपत्ति और पशुओं को नुकसान पहुंचाते हैं। यह एक प्राकृतिक घटना है, लेकिन इस आपदा में लोग भी जिम्मेदार हैं, क्योंकि वे जंगलों को काटते हैं। अगर वे जंगलों को नहीं काटें, तो नुकसान कम होगा। इसलिए खतरे की जगह पर लोहे की तारों से बुनी पथर की दीवारें (क्रेट) और वृक्षारोपण किया जाना चाहिए। हमें इस प्राकृतिक आपदा के होने से पहले जागरूक रहना चाहिए और पहले आई आपदाओं से सीख लेनी चाहिए।
’नरेंद्र्र कुमार, मंडी, हिमाचल प्रदेश