अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी आज भी यही कह रहा है कि ईरान हमें परमाणु मामलों में सहयोग कर रहा है। बावजूद इसके डोनाल्ड ट्रंप एक बार फिर उस पर आर्थिक प्रतिबंध लगाने की बात कर रहे हैं। उनके पिछले प्रतिबंध टांय-टांय फिस्स हो गए। यहां तक कि संयुक्त राष्ट्र में भी अमेरिका को इसके लिए कोई समर्थन नहीं मिला। इस बार भी संयुक्त राष्ट्र ने साफ संकेत दे दिया है कि वह ईरान पर प्रतिबंध लगाने में मदद नहीं करेगा।

अब अमेरिका दुनिया भर के देशों को धमका रहा है कि जिसने भी ईरान से सौदा किया, वह उसे काली सूची में डाल देगा। इसके बावजूद यूरोप के कुछ देश, जो 2015 के परमाणु समझौते के मुख्य गवाह थे, जैसे फ्रांस, ब्रिटेन और जर्मनी ने वाइट हाउस को दो टूक कह दिया है कि परमाणु समझौते का उल्लंघन खुद अमेरिका ने किया है, न कि ईरान ने।

इसलिए उसके द्वारा फिर से प्रतिबंध लगाने के आह्वान को वे अनसुना कर रहे हैं। उम्मीद है कि शेष विश्व को भी, खास कर भारत को ईरान के साथ रिश्तों को ठीक करने को लेकर फिर से कोशिश करनी चाहिए और कच्चे तेल का खरीद शुरू कर देना चाहिए।
’जंग बहादुर सिंह, जमशेदपुर, झारखंड