अभी कर्नाटक के एक स्कूल में हिजाब को लेकर विवाद शुरू हुआ। कुछ मुसलिम छात्राओं ने आंदोलन शुरू कर दिया। एक विद्यालय से शुरू हुआ यह अकारण का आंदोलन अन्य आंदोलनों की तरह धीरे-धीरे पूरे देश मे फैलने लगा है। केवल फैलने ही नही लगा बल्कि जानलेवा भी हो गया है। कर्नाटक में हिजाब को लेकर फेसबुक पर पोस्ट डालने पर एक युवक की दिन दहाड़े सड़क पर दौड़ा कर बड़ी बेहरमी से हत्या कर दी जाती है।

इसके अतिरिक्त भी देश में कई स्थानों पर हिजाब को लेकर हिंसात्मक घटनाएं हुई हैं। सोचने की बात यह है कि विद्यालय से शुरू हुआ एक मामूली से विवाद में लोगों की जान लेने तक कि स्थिति आ गई है। आखिर कौन हैं, ये लोग जो जरा से विवाद के कारण हिजाब का विरोध करने वालों को मारने लगे।कृषि कानून को लेकर आंदोलन हो या नागरिकता संशोधन बिल को लेकर आंदोलन, सभी में लोगों की जानें गई हैं।

भारत सरकार और देश की जनता को समझना ही होगा कि ये सामान्य से शुरू होने वाले आंदोलन धीरे-धीरे व्यापक और हिंसात्मक क्यों हो जाते हैं। इससे प्रतीत होता है कि राष्ट्र-विरोधी शक्तियां हमारे देश को नुकसान पहुंचाने के लिए इनका सहयोग करती हैं, जिससे ये बड़ा और हिंसात्मक रूप ले लेते हैं।

  • ललित शंकर, गाजियाबाद

असुरक्षित महिलाएं

बाहरी दिल्ली के सन्नोठ गांव में मानसिक रूप से दिव्यांग किशोरी की सामूहिक दुष्कर्म के बाद हत्या का मामला सामने आया है। आए दिन महिलाओं के साथ होने वाली ज्यादती की खबरें सुनने को मिलती रहती हैं। महिलाओं के ऊपर जबरन कुछ थोंपना, कार्यस्थल पर उत्पीड़न, घरेलू हिंसा, बलात्कार जैसी घटनाएं समाचार की सुर्खियां बनती हैं।

हमारे समाज में नारी को नारायणी कहा गया है, जो सर्वथा सत्य है, लेकिन ऐसे में समाज में व्याप्त कुरीतियों और महिलाओं के प्रति होने वाली घटनाएं इन सब पर प्रश्नचिह्न लगाती हैं। आवश्यकता है विचारधारा बदलने की, तभी सही मायने में महिलाओं को सम्मान मिल पाएगा। महिलाएं भोग की वस्तु समझी जाती हैं और उनको विज्ञापन आदि में वस्तु की तरह दिखाया जाता है।

न सिर्फ वेद-पुराण, बल्कि हमारा संविधान भी महिलाओं के सम्मान और उनकी बराबरी की बात करता है। सरकार अपने स्तर पर प्रयास कर रही है, महिलाओं के लिए बनाए गए कानूनों की आवश्यकता सिर्फ कागजी नहीं, बल्कि धरातल पर लागू करने की आवश्यकता है। सरकार के साथ-साथ नागरिक समाज का भी दायित्व बनता है कि सब अपने स्तर पर नारी सम्मान के लिए कार्य करें।

आज भी महिलाओं को उस हद तक बराबरी नहीं मिली है जिसकी वे हकदार हैं। आज जब ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है, जो महिलाओं से अछूता हो, चाहे वह रक्षा क्षेत्र हो, खेल जगत हो या प्रशासनिक क्षेत्र। ऐसे में महिलाओं के साथ होने वाला भेदभाव और उनका शोषण एक सभ्य समाज पर प्रश्नचिह्न लगाता है।

  • स्वाति मिश्रा, प्रयागराज