अनुशासन सिखाने और अनुशासन में रहने के लिए सख्त रुख न अपनाकर प्रेम स्नेह और सादगी और सकारात्मकता से भरा किरदार निभाना होगा! बेल्जियम की ल्यूवेंन यूनिवर्सिटी में शोध के आधार पर बच्चों के डीएनए में साढ़े चार लाख नकारात्मक बिंदु खोजे गए। अक्सर माता-पिता अपने बच्चों से उनकी क्षमता से अधिक उम्मीदें करते हैं। जब वे इस कसौटी पर खरे नहीं उतरते तो व्यवहार में बदलाव करते हैं।

बचपन से ही माता-पिता का सख्त रवैया बच्चों को तनाव में रखता है और अवसाद का शिकार बना देता है। उनके दिमाग पर गहरा असर डालने के साथ मानसिक रूप से बीमार होने की संभावना हो जाती है। अक्सर माता-पिता बच्चों को सार्वजनिक रूप से डांट-फटकार लगाते हैं। बच्चों के आत्मसम्मान पर ठेस पहुंचती है। वे अपने आत्मसम्मान पर हमला मान लेते हैं, अपमानित महसूस करते हैं।

ध्यान रखना होगा की बच्चों को दूसरों के सामने डांट-फटकार न लगाई जाए। दूसरों के सामने मारने-पीटने जैसे दुर्व्यवहार कर दंडित न किया जाए। इस व्यवहार से बच्चों मे गुस्सैल और जिद से भरा व्यवहार नजर आने लगता है। बच्चे बागी होने लगते हैं। नए अध्ययनों और शोध से यह मालूम हुआ है कि सख्त रुख अपनाने से बच्चों में आत्मविश्वास की कमी नजर आती है, बल्कि वे आत्मविश्वास खो देते हैं। वे बड़े होकर भी इससे उबर नहीं पाते।

अभिभावक अगर बच्चों के प्रति लगातार सख्त रुख अपनाएंगे तो इसका असर बच्चों के डीएनए पर पड़ सकता है। माता-पिता के सख्त होने से बच्चों के आचरण और व्यवहार में परिवर्तन होने लगता है और बच्चे माता-पिता से बातें छिपाना शुरू कर देते हैं। अपने मन की बात वे नहीं कर पाते। अपना गुस्सा कहीं न कहीं वे उतारने लगते हैं। साथ ही बच्चों मे धीरे-धीरे हिंसक प्रवृत्ति जन्म ले लेती है। ऐसे व्यवहार से गुजरे बच्चों के बड़े होने पर दोस्त भी नहीं बन पाते। साथ ही भावनात्मक रूप से जुड़ना और विचारों में सामंजस्य कायम करना मुश्किल हो जाता है।

बाल्यावस्था में सख्त रुख से प्रभावित बच्चे शिक्षा के क्षेत्र में भी बेहतर नहीं दे पाते। वैज्ञानिकों के मुताबिक शारीरिक रूप से स्वास्थ्य पर गहरा असर पड़ने के बाद वैसे बच्चे जीवनभर बीमार रहते हैं। बेल्जियम के वैज्ञानिकों के अध्ययन के अनुसार, अमेरिका में दस में से एक बच्चा मानसिक तनाव का शिकार हो रहा है। वैज्ञानिकों ने तेईस लड़के- लड़कियों के अध्ययन में पाया कि माता-पिता बच्चों के साथ सख्ती से पेश आते हैं। कई बार उन्हें शारीरिक दंड भी देते हैं। ऐसे बच्चों की उम्र बारह से सोलह वर्ष के बीच है।

बच्चों का जीवन माता पिता पर निर्भर होता है। उन्हें अनुशासन शिक्षा, सभ्यता का पाठ पढ़ाना है तो सकारात्मक रवैया अपनाना होगा। बच्चों को खुशहाल माहौल देना होगा। उनकी दिलो-दिमाग की बात हम जान लें, ऐसा मौका और भयमुक्त माहौल देना होगा। इसमें कोई दो मत नहीं कि हम बच्चों के भविष्य को सुखद देखना चाहते हैं तो हमें उनके सम्मान, आत्मसम्मान और आत्मविश्वास को सहजतापूर्ण मजबूती देनी होगी।
योगेश जोशी, बड़वाह