इस साल भी महिला दिवस के संदर्भ में महिला सशक्तिकरण, बंदिशें तोड़ कर कामयाब और आत्मनिर्भर बनी महिलाओं की खूब चर्चा हुई और हम तरक्की के पथ पर अग्रसर महिलाओं से रूबरू हुए। पर अब कुछ पुरुषों की बात भी की जाए, क्योंकि अगर महिलाओं को सुरक्षित रखना है तो पुरुषों को यौन अपराधों की विभीषिका, इससे जुड़ी मानसिक और शारीरिक प्रताड़नाओं और सामाजिक दुष्प्रभावों के बारे में विस्तार से समझाना होगा। हर पुरुष को सोचना होगा कि अगर उनके घर की किसी महिला के साथ यौन अपराध हो जाए तो उन पर क्या बीतेगी!
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार देश में प्रतिदिन लगभग ग्यारह हजार छेड़छाड़ के और लगभग अठासी बलात्कार के मामले होते हैं। ये तो सिर्फ वे मामले हैं जो पुलिस तक पहुंचते हैं। एक अनुमान के अनुसार इससे दुगने मामले तो कभी रिपोर्ट ही नहीं होते। इससे इतर भीड़ की आड़ या अन्य बहानों से छूना, घूरना, चिपकना जैसी अनेक अश्लील हरकतें या सूक्ष्म यौन अपराध हैं जो प्रतिदिन बड़े पैमाने पर होते हैं और जिनका ज्यादातर महिलाएं अपनी नियति मान कर कोई प्रतिकार ही नहीं करतीं हैं।
गौरतलब है कि ये सब किसी की मां, बहन, बेटी या पत्नी हैं और इनमें से कोई हमारे घर की भी हो सकती हैं। अव्वल तो पुरुषों को अपने मानस के स्तर पर स्त्रियों के प्रति सभ्य होना होगा और खुद को बेहतर इंसान बनाना होगा। दूसरे, उन्हें समझना होगा कि सभी महिलाओं में उनकी अपनी मां, बहन, बेटी आदि भी शामिल हैं। इसलिए उन्हें समाज की हर महिला को संरक्षण देना होगा, सशक्त होने में मदद करना होगा और सूक्ष्म से सूक्ष्म यौन अपराध करने से रुकना और रोकना होगा। इस तरह एक सभ्य इंसान बनने में ही पुरुषों का हित है।
’बृजेश माथुर, बृज विहार, गाजियाबाद, उप्र
हाशिये पर जनता
बीते दिनों देश में तेजी से बढ़ रहे पेट्रोल डीजल के दामों ने आम आदमी को आर्थिक रूप से लचर कर दिया है। कीमतों में आ रही तेजी का प्रभाव जनता की जेब पर पड़ रहा है, जिसके कारण व्यक्ति की रोजमर्रा के जीवन पर असर हो रहा है। सरकार द्वारा बनाए गए नियम-कानून की अपनी भूमिका होती है, लेकिन जनता की आर्थिक स्थिति को नजरअंदाज करना, सरकार की लापरवाही, कमजोर इच्छाशक्ति और बदतर कार्यप्रणाली को दर्शाता है।
देश की अर्थव्यवस्था में कई उतार-चढ़ाव को देखा गया है, जिसके बाद से सरकार भी अर्थव्यवस्था की दर के सुधार को लेकर प्रयास करती है, मगर इस भरपाई का एकमात्र तरीका रोजमर्रा की जरूरतों वाले चीजों की कीमतों मे वृद्धि करना ही नहीं है।
’निशा कश्यप, दिल्ली</p>