भारत की आबादी का बड़ा हिस्सा आज भी कुपोषण की मार झेल रहा है। देश के निर्धन तबके को पर्याप्त और पौष्टिक भोजन सुलभ नहीं होना, जागरूकता का अभाव, महिलाओं, नवजात शिशु और बच्चों को पोषणयुक्त खुराक नहीं मिल पाना, महिलाओं पर तरह-तरह के सामाजिक दबाव, लड़कियों का कम आयु में विवाह और संतानोत्पत्ति, कम वजन के नवजात शिशु का जन्म जैसे कई कारण हैं जो कुपोषण के संकट को बढ़ाते हैं।

फिर हमारे स्वास्थ्य तंत्र का ढांचा भी इतना कमजोर है कि हर व्यक्ति को गुणवत्ता पूर्ण स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया करा पाना एक बड़ी चुनौती बना हुआ है। ऐसे में कुपोषण जैसी समस्या प्राथमिकता में कहीं नहीं दिखती। बिना लोगों को स्वस्थ्य बनाए देश को शक्तिशाली कैसे बना पाएंगे?
’एस कुमार चंदवारा, लालगंज, वैशाली

टीके पर सवाल

स्वीडिश एवं ब्रिटिश दवा निमार्ता कंपनी ने जब कोविड के टीके बना लेने की घोषणा की थी, तो तीसरी दुनिया के देशों में एक उम्मीद जगी थी। इस कंपनी ने घोषण की थी की जब तक महामारी रहेगी, तब तक वह केवल लागत मूल्य पर ही टीके बेचेगी।

इसके रखरखाव में भी दिक्कत नहीं है। सामान्य तापमान में भी इसे रखा जा सकता है। मगर रविवार को दक्षिण अफ्रीका ने जब घोषणा कर दी कि वह इस टीके का इस्तेमाल फिलहाल स्थगित कर रहा है क्योंकि ये नए किस्म के वायरस के लिए उतना प्रभावशाली नहीं है जितना कि होना चाहिए था।

इसका मतलब यह हुआ कि इस समय विश्व में तीन-चार नए स्वरूप वाले कोरोना विषाणुओं का पता चला है। कहीं ऐसा तो नहीं की अन्य कंपनियों द्वारा बनाए गए टीकों का भी प्रभाव इसमें न पड़े? ऐसे हम इस विषाणु के साथ शुरूआती जंग में कहीं पिछड़ तो नहीं जाएंगे?
’जंग बहादुर सिंह, गोलपहाड़ी, जमशेदपुर