US Tariff Impact: अमेरिकी टैरिफ लागू होने के बाद देशभर में निर्यातकों (exporters) की मुश्किलें बढ़ी हैं। लेकिन केंद्र सरकार ने नए 50 प्रतिशत यूएस टैरिफ लगने के बाद एक्सपोर्टर्स को संदेश दिया है कि वे अमेरिका बाजार में अपनी हिस्सेदारी को बनाए रखने की कोशिश करें। दो प्रमुख आर्थिक मंत्रालयों- वित्त और वाणिज्य ने सबसे ज्यादा प्रभावित सेक्टरों के निर्यातकों से बैठक की और उन राहत उपायों का सुझाव दिया जो कोविड के दौरान लागू किए गए थे ताकि मौजूदा संकट का सामना किया जा सके।

बता दें कि रेसिप्रोकल टैरिफ और सेकेंडरी टैरिफ लागू हुए कई हफ्ते बीत चुके हैं। लेकिन इसके बावजूद एक्सपोर्टर्स को कोई राहत नहीं मिली है और अब निर्यातक तकलीफ़ महसूस करने लगे हैं।

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आर्थिक मंत्रालयों के सूत्रों का कहना है कि निर्यातकों से आने वाले पत्र और पूछताछ ने स्थिति को और मुश्किल बना दिया है। निर्यातकों के साथ बातचीत का नेतृत्व करने और उनके कैश फ्लो में मदद करने का वादा करने के बाद, मंत्रालय खुद को एक नाज़ुक स्थिति में पाकर चिंतित हैं।

सूत्रों का कहना है कि राहत उपायों पर उच्चतम स्तर पर चल रही विचार-विमर्श में ज्यादा प्रगति नहीं हुई है क्योंकि SOPs और छूट खत्म होने की तारीख जैसी अनिश्चितताओं के चलते इसे एक ओपन-एंडेड पैकेज की तरह घोषित करना मुश्किल है।

कोविड में लागू नीतियों से सरकार को फायदा

इसके अलावा, कोविड के अनुभवों को देखें तो सरकार को यह पता चला कि जहां अन्य देशों ने अपने वित्तीय बजट को उदारता से बढ़ाया वहीं भारत ज्यादा सावधान रहा और इससे सरकार को फायदा हुआ।

एक वरिष्ठ अधिकारी ने The Indian Express को नाम न छापने की शर्त पर बताया, ‘सरकार ने कोविड के दौरान मुफ्त राशन मुहैया कराया, लेकिन तब भी सबसे ज्यादा ध्यान लॉन्ग-टर्म के लिए सुधारों- आत्मनिर्भर भारत बनाने पर था। अब भी, विचार-विमर्श इस बात पर हो रहा है कि मौजूदा परिस्थितियों के हिसाब से मीडियम से लॉन्ग-टर्म के लिए क्या सुधार किए जा सकते हैं।’

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कंपनियां, वित्त मंत्रालय और वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय को पत्र लिखकर ऐसे समर्थन उपायों की मांग कर रही हैं जो उन्हें अमेरिकी बाजार में प्रतिस्पर्धात्मक बनाए रखने में मदद कर सकें। निर्यातकों का कहना है कि अमेरिकी बाजार में हिस्सेदारी खोना लंबे समय तक नुकसानदायक होगा। निर्यातकों की चिंताओं का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि अमेरिकी टैरिफ के बारे में अनिश्चितता, नौकरी खोने के जोखिम को भी बढ़ा रही है।

हालांकि दोनों देशों के बीच बातचीत फिर से शुरू हो गई है लेकिन सरकार ने औपचारिक वार्ता की नई तारीख अभी तक जारी नहीं की है। एक अमेरिकी अधिकारी ने कहा कि दोनों देशों के बीच पिछली बैठक अच्छी रही, लेकिन रूसी तेल के मुद्दे का समाधान उनके बीच व्यापार समझौते के केंद्र में होगा।

दिक्कत में निर्यातक

एक अन्य वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “निर्यातक अब तकलीफ़ महसूस करने लगे हैं क्योंकि अब तक फ्रंट-लोडिंग हो रही थी और कई सेक्टरों को अमेरिकी आयातकों द्वारा बचाया जा रहा था। हालांकि, भारतीय निर्यातकों को बचाने के लिए इन आयातकों की भी सीमाएं हैं क्योंकि उनके पास वियतनाम, इंडोनेशिया और बांग्लादेश में विकल्प मौजूद हैं। कई चीजें अब तक व्यक्तिगत समझौतों के जरिए संभाली जा रही थीं लेकिन अब समय तेजी से कम हो रहा है। इसलिए तुरंत राहत और निवारक उपायों की आवश्यकता है।”

अधिकारी ने कहा, “सबसे ज्यादा तकलीफ़ निर्यातकों में महसूस की जा रही है, खासकर उन लोगों में जिनका 100 प्रतिशत कारोबार अमेरिकी बाजार में है। कई स्पेशल इकोनॉमिक ज़ोन (SEZ) की इकाइयों ने सरकार को पत्र लिखा है कि उन्हें डिनोटिफ़ाई किया जाए क्योंकि वे बाहर निकलना चाहती हैं। समय की सीमा बहुत महत्वपूर्ण है, और COVID-19 के दौरान कुछ ऐसे उपाय किए गए थे जिन्हें राहत देने के लिए लागू किया जा सकता है।”

एक अन्य अधिकारी ने बताया कि वाणिज्य मंत्रालय और वित्त मंत्रालय के बीच अभी भी इस बात पर मतभेद हैं कि राहत उपाय कैसे दिए जाएं। वाणिज्य मंत्रालय ने कई उपाय प्रस्तावित किए हैं- जैसे डोमेस्टिक टैरिफ एरिया (DTA) बिक्री और रिवर्स जॉब वर्क, जिससे SEZ की इकाइयां घरेलू बाजार में सेवाएं और सामान ऑफर कर सकें। लेकिन राजस्व विभाग इस पर सहमत नहीं है।

अधिकारी ने कहा, “निर्यात किए गए उत्पादों पर ड्यूटी और टैक्स की वापसी योजना (Scheme for Remission of Duties and Taxes on Exported Products) और निर्यातकों के लिए इंटरेस्ट ईक्वलाइज़ेशन स्कीम में भी मतभेद हैं। Merchandise Exports from India Scheme के जरिए राहत दी जा सकती है लेकिन जब तक दिशा-निर्देश जारी होंगे, तब तक बहुत देर हो सकती है।”

राहत उपायों पर चर्चा जारी

अधिकारी ने कहा कि कई उपायों पर चर्चा हो चुकी है लेकिन कोशिश इसे प्रभावी बनाने और निर्यातकों का लॉन्ग टर्म सपोर्ट देने के लिए किए जा रहे हैं। उन्होंने आगे कहा, “वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय यहां तक तैयार है कि वित्त मंत्रालय इस मुद्दे पर नेतृत्व करे और इसकी मान्यता भी ले, लेकिन कुछ न कुछ उपाय लागू जरूर होने चाहिए।”

हालांकि, सूत्रों ने बताया कि इस पैकेज के अलावा, वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय निर्यातकों को अन्य तरीकों से राहत देने पर काम कर रहा है- जैसे ई-कॉमर्स निर्यात को बढ़ावा देने वाले उपाय। अधिकारी ने कहा, “पिछले सप्ताह, कई बैठकें हुईं ताकि ई-कॉमर्स कंपनियों को शामिल करने के लिए गार्डरेल्स तय किए जा सकें, जिससे भारतीय MSMEs से अधिक से अधिक उत्पादों की सोर्सिंग कर निर्यात बढ़ाया जा सके।”

भारत पर अभी 50 प्रतिशत टैरिफ लागू

आपको बता दें कि 31 जुलाई को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने International Emergency Economic Powers Act के तहत भारत पर 25 प्रतिशत रेसिप्रोकल टैरिफ लगाया था। 6 अगस्त को रूसी तेल आयात करने का हवाला देते हुए ट्रंप ने एक एग्जिक्युटिव ऑर्डर साइन किया और भारत पर 25 प्रतिशत का अतिरिक्त टैरिफ थोप दिया।

भारत ने 2024-25 में अमेरिका को 87 बिलियन डॉलर के सामान का निर्यात किया। वित्त मंत्रालय ने अनुमान लगाया है कि इन निर्यातों का 55 प्रतिशत अमेरिकी टैरिफ से प्रभावित होगा।

इस बीच, नीति आयोग में पिछले सप्ताह विभिन्न सेक्टरों के सरकारी अधिकारियों की बैठक हुई जिसमें उन क्षेत्रों में क्वालिटी कंट्रोल ऑर्डर (QCOs) को आसान बनाने पर चर्चा की गई, जहां भारत उन विशेष उत्पादों का उत्पादन नहीं करता। एक अधिकारी ने कहा कि इससे निर्माताओं द्वारा उठाए गए कई मुद्दों- खासकर लेबर-इंटेंसिव सेक्टर जैसे टेक्सटाइल्स की दिक्कतें दूर की जा सकती हैं।

India SME Forum के अध्यक्ष, विनोद कुमार ने The Indian Express को बताया कि 1 अक्टूबर को बैंकों के लिए RBI द्वारा जारी दिशा-निर्देश छोटे निर्यातकों के लिए ई-कॉमर्स निर्यात में कंप्लायंस बोझ को काफी कम कर देंगे। Export Data Processing and Monitoring System और Import Data Processing and Monitoring System में समय पर प्रविष्टियों को बंद करने की सुविधा के लिए, RBI ने हरएक एंट्री या बिल के लिए 10 लाख या उससे कम मूल्य वाले कंसाइनमेंट्स के लिए कई दिशानिर्देश जारी किए हैं।

नई दिल्ली स्थित थिंक टैंक Global Trade Research Initiative (GTRI) के संस्थापक अजय श्रीवास्तव के अनुसार, ऐसे चार व्यापक क्षेत्र हैं जहां सरकार का हस्तक्षेप मददगार होगा। पहला- Market Access Initiative और Interest Equalisation Scheme को सक्रिय करना। Export Promotion Mission, Bharat Trade Net, और E-commerce Export Hubs जैसी लंबित घोषणाओं को लागू करने की भी जरूरत है ताकि डिजिटल और MSME-नेतृत्व वाले निर्यात को बढ़ावा मिले।

इसके अलावा, कस्टम क्लीयरेंस को तेज करने और Advance Authorisation Scheme को सरल बनाकर प्रक्रियाओं को सुधारने की जरूरत भी है। निर्यात को बढ़ावा देने वाले बजट में पर्याप्त वृद्धि करना भी जरूरी है जिससे सरकार भारतीय निर्यातकों को व्यापक और पूर्वानुमेय समर्थन प्रदान कर सके।

इस बीच, निर्यातक- खासकर लेबर-इंटेंसिव सेक्टर जैसे टेक्सटाइल, परिधान, और जेम्स व ज्वेलरी ने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण, वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल, और RBI गवर्नर संजय मल्होत्रा से राहत की मांग के लिए कई बैठकें की हैं।

3 सितंबर को Export Promotion Councils के साथ हुई बैठक के बाद, वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय ने बयान में कहा कि गोयल ने इस बैठक की अध्यक्षता की जिसमें उभरते वैश्विक टैरिफ, समाधान खोजने और बदलते व्यापार परिदृश्य में आगे का रास्ता तय करने पर चर्चा की गई।

मंत्रालय के बयान के अनुसार, “गोयल ने बदलते वैश्विक व्यापार परिदृश्य के बीच भारतीय निर्यातकों के हितों की रक्षा के प्रति सरकार की अडिग प्रतिबद्धता को दोहराया। उन्होंने उद्योग प्रतिनिधियों को आश्वस्त किया कि सरकार निर्यातकों को हालिया चुनौतियों से निपटने में मदद करने के लिए सक्षम वातावरण बनाने में सक्रिय रूप से लगी हुई है।”