केंद्र सरकार द्वारा श्रम कानूनों में बदलाव और सार्वजनिक उपक्रमों के निजीकरण के खिलाफ 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के बुधवार को राष्ट्रव्यापी हड़ताल पर जाने से पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा, केरल और कर्नाटक सहित देश के विभिन्न हिस्सों में सामान्य जनजीवन प्रभावित हुआ। ट्रेड यूनियन नेताओं का दावा है कि संगठित क्षेत्र से करीब 15 करोड़ कामगार अपनी 12 सूत्री मांगों के समर्थन में हड़ताल पर रहे। भाजपा समर्थित बीएमएस और एनएफआईटीयू ने हालांकि हड़ताल से दूरी बनाई।
इस हड़ताल का देश के विभिन्न हिस्सों में परिवहन एवं बैंकिंग परिचालनों समेत अन्य सेवाओं पर असर दिखा। सार्वजनिक क्षेत्र के 23 बैंक, निजी क्षेत्र के 12 बैंक, 52 क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक एवं 13,000 से अधिक सहकारी बैंक इस हड़ताल में शामिल हुए। हालांकि एसबीआई, आईओबी, आईसीआईसीआई बैंक, एचडीएफसी बैंक और एक्सिस बैंक हड़ताल में शामिल नहीं थे। आल इंडिया बैंक एंप्लाईज एसोसिएशन के महासचिव सीएच वेंकटचलम ने कहा कि बैंकिंग क्षेत्र में कार्यरत दस लाख कर्मचारियों में से आधे से अधिक हड़ताल का समर्थन कर रहे हैं।
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कोलकाता में उपनगरीय ट्रेनों पर हड़ताल का आंशिक असर देखा गया। जबकि ज्यादातर इलाकों में दुकानें, बाजार और कारोबारी प्रतिष्ठान बंद रहे। राज्य प्रशासन ने बड़ी संख्या में सार्वजनिक परिवहन की बसें चलाई थीं पर निजी बसों व टैक्सियों के परिचालन पर आंशिक असर देखा गया। राष्ट्रीय राजधानी में लोगों को समस्याओं का सामना करना पड़ा क्योंकि बड़ी संख्या में आटो और टैक्सी नहीं चले।
केरल में सरकारी और निजी बस सेवाएं, टैक्सी व ऑटोरिक्शा नहीं चले। केवल कुछ निजी कारें व दोपहिया वाहन सड़कों पर दिखाई दिए। राज्य में दुकानें, होटल और यहां तक कि चाय की दुकानें तक बंद रहीं। त्रिपुरा में सड़कों पर वाहन नजर नहीं आए। जबकि ज्यादातर बाजार बंद रहे। राज्य में बैंक एवं अन्य वित्तीय संस्थान, स्कूल व कालेज बंद थे। सरकारी कार्यालयों में भी उपस्थिति बहुत मामूली दिखी। ओएनजीसी इकाई और त्रिपुरा जूट मिल के प्रवेश द्वार बंद रहे।
कर्नाटक में भी हड़ताल से सामान्य जनजीवन प्रभावित हुआ। राज्य सरकार के परिवहन विभाग के कर्मचारी प्रस्तावित मोटर विधेयक के खिलाफ हड़ताल में शामिल हुए हैं। जिससे सड़कों से बस व आटोरिक्शा नदारद रहे। इससे आफिस जाने वाले लोगों व अन्य लोगों को असुविधा का सामना करना पड़ा। पुदुचेरी में भी हड़ताल का असर दिखाई दिया। लेकिन तमिलनाडु बहुत हद तक इससे अप्रभावित था।
पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़ में सार्वजनिक परिवहन जैसी कई सेवाएं आंशिक रूप से प्रभावित हुई । हांलाकि लोगों को आवागमन में बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ा बेशक निजी बसें चल रही थीं। आल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस के सचिव डीएल सचदेव ने गुड़गांव में कहा कि पांच लाख औद्योगिक कामगार हड़ताल पर थे। उन्होंने दावा किया कि आंदोलन के चलते कर्मचारी मारुति सुजुकी के कारखाने में नहीं आए और राजस्थान रोडवेज के कर्मचारी भी हड़ताल में शामिल हुए। मानेसर में होंडा मोटरसाइकिल एंड स्कूटर का संयंत्र बंद रहा।
ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस के महासचिव गुरुदास दासगुप्ता ने कहा कि हड़ताल का देशभर में असर हुआ । कई इलाकों में बीएमएस के लोग भी हड़ताल में शामिल हुए । कई स्थानीय एवं सबद्ध यूनियने भी हड़ताल में शामिल हुई। हड़ताल से साफ हो गया कि लोग सरकार की कर्मचारी विरोधी नीति से कितना अधिक क्षुब्ध हैं। गोवा में सुबह से ही सड़कों पर सन्नाटा पसरा था क्योंकि निजी बसें व सरकारी कदंबा ट्रांसपोर्ट कारपोरेशन की बसें सड़कों पर नहीं चलीं। वहीं दिल्ली में लोगों को कई जगहों पर आटोरिक्शा के लिए घंटों इंतजार करते देखा गया।
ओड़िशा में कई जगहों पर ट्रेन सेवाएं कुछ समय के लिए बाधित हुईं क्योंकि आंदोलनकारियों ने कटक, भुबनेश्वर, संबलपुर, भद्रक, छत्रपुर और खालीकोट जैसे रेलवे स्टेशनों पर मार्ग अवरुद्ध कर दिए। सरकार ने ट्रेड यूनियनों से कामगारों व राष्ट्र के हित में अपना आंदोलन वापस लेने की मंगलवार को अपील की थी। हालांकि यूनियनों ने हड़ताल पर जाने का निर्णय किया क्योंकि वित्त मंत्री अरुण जेटली की अगुवाई वाले मंत्रिसमूह के साथ उनकी बातचीत सिरे नहीं चढ़ सकी थी।
ट्रेड यूनियनों की मांगों में महंगाई पर काबू पाने के लिए तत्काल उपाय, बेरोजगारी पर अंकुश, प्राथमिक श्रम कानूनों को सख्ती से लागू करना, सभी कामगारों के लिए सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा कवर और प्रतिमाह 15,000 रुपए का न्यूनतम वेतन शामिल हैं। साथ ही वे कामगारों की पेंशन बढ़ाने, सार्वजनिक उपक्रमों में विनिवेश बंद करने, ठेका प्रथा बंद करने, बोनस व भविष्य निधि पर सीमा समाप्त करने, 45 दिनों के भीतर ट्रेड यूनियनों का अनिवार्य पंजीकरण, श्रम कानूनों में मनमाने ढंग से बदलाव नहीं करने और रेलवे, रक्षा आदि क्षेत्र में एफडीआई रोकने की भी मांग कर रहे हैं।