दिलचस्प है कि 19वीं सदी के मध्य में शेयर बाजार में कदम बढ़ा चुका भारत आज दुनिया के दस शीर्ष सूचकांकों वाले बाजार में स्थान रखता है। यही नहीं, इस दौरान आंकिक हैसियत के हिसाब से लगातार कीर्तिमान रच रहा भारतीय शेयर बाजार दुनिया के लिए एक बड़े निवेशीय आकर्षण के तौर पर भी देखा जा रहा है। भारतीय शेयर बाजार के हाल और इतिहास के बारे में बता रहे हैं आशुतोष राय।

मुंबई शेयर बाजार का संवेदी सूचकांक 50 हजार अंक से आगे की शिखरयात्रा पर निकल चुका है। यह न सिर्फ बढ़त की ऐतिहासिक स्थिति है बल्कि इससे यह भी जाहिर होता है कि देश अपने वित्तीय और कारोबारी ढांचे में उस सुदृढ़ता को पा चुका है, जिसकी कुछ दशक पहले तक कोई उम्मीद भी नहीं कर सकता था। यह एक दिलचस्प सफरनामा है। खासतौर पर शेयर बाजार के क्षेत्र में ‘बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज’ (बीएसई) ने जिस तरह का भरोसा कारोबारियों के साथ निवेशकों के बीच पैदा किया है, वह अभूतपूर्व है।

सायादार आगाज

भारत में शेयर बाजार की शुरुआत 19वीं सदी के मध्य में मुंबई के टाउन हाल के विपरीत एक विशाल बरगद के पेड़ की छाया में हुई थी। मुंबई के पुराने व्यापारिक केंद्र होने के नाते उस समय कुछ व्यापारी जूट के व्यापार के लिए उस पेड़ के नीचे इकट्ठा हुआ करते थे। 1850 में कंपनी एक्ट के आने के साथ ही निवेशकों की प्रतिभूतियों की खरीद-बिक्री में दिलचस्पी बढ़ती गई। नतीजतन 22 स्टॉक ब्रोकर्स का एक समूह अस्तित्व में आया जिसकी शुरुआत भी उस बरगद के पेड़ के साए में ही हुई। आगे चलकर 1874 में ‘द नेटिव शेयर एंड स्टॉक ब्रोकर्स एसोसिएशन’ बना, जिसने भविष्य में बीएसइ का रूप लिया। बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज भारत ही नहीं एशिया महाद्वीप का पहला स्टॉक एक्सचेंज बना।

इसके कुछ समय बाद ही 1894 में अहमदाबाद स्टॉक एक्सचेंज बना, जिसका प्रमुख उद्देश्य उस समय शहर की प्रमुख कपड़ा मिलों में हिस्सेदारियों को खरीदना व बेचना था। इसी तरह जूट उद्योग में शेयर बाजार को बढ़ावा देने और निवेशकों की हिस्सेदारी बढ़ाने के मकसद से 1908 में कलकत्ता स्टॉक एक्सचेंज और 1920 में मद्रास स्टॉक एक्सचेंज अस्तित्व में आए। 1957 में बीएसई, प्रतिभूति संविदा (विनियमन) अधिनियम, 1956, के तहत मान्यता प्राप्त भारत का पहला स्टॉक एक्सचेंज बना। 1986 में बीएसई ने अपना मानक सूचकांक ‘सेंसेक्स’ शुरू किया। सेंसेक्स बीएसई में सूचीबद्ध प्रमुख 30 कंपनियों को आधार मानकर बनाया गया सूचकांक है जो स्टॉक एक्सचेंज के प्रदर्शन को दर्शाता है।

बीएसई के बाद एनएसई

आजादी के बाद के दौर में भारतीय शेयर बाजार में बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज का दबदबा रहा। पर शेयर बाजार में पारदशर््िाता की कमी, भुगतान के निपटान और समाधान आदि कारणों से एक वित्तीय नियामक की जरूरत पड़ी जिसको ध्यान में रखते हुए 1988 में सेबी (भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड) एक गैर-सांविधिक निकाय के रूप में अस्तित्व में आया जिसे 1992 में सांविधिक निकाय का दर्जा मिला।

1992 में हर्षद मेहता मामले के बाद शेयर बाजार में पारदशर््िाता और प्रतिस्पर्धा को बनाए रखने के लिए एक अन्य स्टॉक मार्केट जो अपने आकार और स्वरूप में बीएसई के मुकाबले का हो कि जरूरत महसूस होने लगी। जिसके परिणामस्वरूप नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) अस्तित्व में आया। इसे 1993 में मान्यता मिली और यहां 1994 में

कारोबार शुरू हुआ।

एनएसई ने ‘सीएनएक्स-निफ्टी’ के नाम से अपना मानक सूचकांक जारी किया जो की एनएसई में सूचीबद्ध 50 प्रमुख कंपनियों के प्रदर्शन के आधार पर एनएसई की वास्तविक समय में स्थिति को दर्शाता है। स्वतंत्रता के बाद बीएसई और एनएसई अतिरिक्त कुल 22 स्टॉक एक्सचेंज बने जिनमे केवल पांच को ही मान्यता हासिल हुई है। ये पांच हैं- कलकत्ता स्टॉक एक्सचेंज, मगध स्टॉक एक्सचेंज, मेट्रोपॉलिटन स्टॉक एक्सचेंज आॅफ इंडिया लिमिटेड, इंडिया इंटरनेशनल एक्सचेंज, एनएसई आइएफएससी लिमिटेड।

विकास का पैमाना

सेंसेक्स को भारत के विकास के बैरोमीटर के रूप में देखा जा सकता है। साथ ही इससे समय के साथ अर्थव्यवस्था में बदलाव को समझने में सहायता मिलती है। शुरुआत में सेंसेक्स औद्योगिक और उपभोक्ता क्षेत्रों, जैसे कि अभियांत्रिकी, सीमेंट, उर्वरक और उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स में कंपनियों के शेयरों तथा 1990 का दशक आते-आते सेवा क्षेत्र जैसे वित्तीय सेवाओं, दूरसंचार और अन्य सेवाओं से जुड़ी अर्थव्यवस्था का प्रतिनिधित्व करने लगा था। 2000 से सूचना प्रौद्योगिकी, वित्तीय सेवाएं, उपभोक्ता विवेकाधिकार, स्वास्थ्य देखभाल और यहां तक कि ऊर्जा जैसे क्षेत्र सेंसेक्स के महत्त्वपूर्ण घटक बन गए।

वर्तमान में बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज में लगभग 6000 सूचीबद्ध कंपनियां हैं और यह विश्व के सबसे बड़े स्टॉक एक्सचेंज में से एक है। साथ ही इसकी दुनियाभर के ग्राहकों के बीच उपस्थिति है, जो कि भारतीय पूंजी बाजार के विकास को बढ़ावा देने में अहम भूमिका निभाता है। हालांकि 1986 में शुरू हुई सेंसेक्स की सौ अंकों से शुरू होकर आज 51 हजार के आंकड़े को छूने की यह यात्रा भारी उतार-चढ़ाव से भरी हुई रही है।

अपने शुरुआती दौर में हजार अंक तक पहुंचने में सेंसेक्स को 11 साल लग गए थे लेकिन अगले 3000 अंक को केवल एक साल में ही प्राप्त कर लिया। 2006 में सेंसेक्स ने चीनी नेतृत्व वाली ‘कमोडिटी बूम’ के रूप में 10,000 का आंकड़ा पार किया। उस समय वैश्विक बाजारों में तेज उठान देखा गया था।

बढ़त का कीर्तिमान

दिसंबर, 2007 में सेंसेक्स ने वैश्विक तरलता से प्रभावित होकर 20,000 अंक हासिल किए। हालांकि यह वृद्धि ज्यादा समय तक नहीं टिकी और 2008 के आर्थिक संकट ने दुनिया के बाजारों को प्रभावित किया और उस वर्ष अक्टूबर तक सेंसेक्स ने अपने मूल्य का 64 फीसद खो दिया था, जो 8,500 अंक तक डूब गया। अगले पांच वर्षों में, बाजार में लगातार सुधार हुआ और 2012 में उबरने वाली भारतीय अर्थव्यवस्था और सुधारों के दूसरे दौर में तेजी आई। दुनिया भर के केंद्रीय बैंकों ने एक आक्रामक रुख अपनाए रखा। इस अवधि में सेंसेक्स की बढ़त चौंकाने वाली रही है।

1979 से 2019 की अवधि में सेंसेक्स 16.1 फीसद की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर से बढ़ा। पिछले 40 सालों में सेंसेक्स ने 17 फीसद से अधिक का सीएजीआर दिया है, जो भारत में किसी भी परिसंपत्ति वर्ग की सबसे बड़ी कमाई है। इसे आप आय के वृहद सूचकांक के तौर पर देखें तो यह 17 फीसद से अधिक है।

यदि आपने सेंसेक्स का प्रतिनिधित्व करने वाले शेयरों की एक टोकरी में 10,000 का निवेश किया था तो आज आपकी वित्तीय हैसियत 45 लाख रुपए से अधिक की होगी। यहां यह जानना जरूरी है कि शेयर में निवेश एक जोखिम का काम है चूंकि वृद्धि का क्रम सतत और सुचारू नहीं रहा है। कभी यह वृद्धि 150 फीसद तक रही है तो किसी वर्ष में ऋणात्मक भी रही है। इसके लिए बाजारों की अस्थिर प्रकृति को समझने के साथ-साथ आर्थिक चक्र को भी समझना जरूरी होता है, जो दीर्घकाल में बाजार में बने रहने के लिए सहायक है।

धार और सुधार

बीते साल में कोरोना महामारी के दौरान भारतीय शेयर बाजार ने एक मिलिजुली प्रतिक्रिया दी है। कोरोना ने अर्थव्यवस्था के कृषि और कुछ अन्य प्राथमिक क्षेत्र को छोड़कर विनिर्माण और सेवा क्षेत्र को बुरी तरह प्रभावित किया। महामारी के दौरान किए गए पूर्णबंदी के कारण कई विनिर्माण इकाइयां लंबी अवधि के लिए बंद रहीं और सेवाएं बाधित हुर्इं, जिनसे एक निराशाजनक माहौल शेयर बाजार में रहा। परंतु आॅनलाइन सेवाओं और फार्मा कंपनियों के

कामकाज में बढ़ोतरी हुई।

साथ ही महामारी के दौरान जारी किए गए आर्थिक सहायता पैकेजों ने भी शेयर बाजार की स्थिति को संभाले रखा। आरबीआइ द्वारा रेपो रेट में लगातार कटौती, लघु, कुटीर और मध्यम उद्योगों की सीमाओं का पुनर्निर्धारण, विनिवेश और निजीकरण की प्रक्रियाओं में तेजी जैसे निर्णयों ने भारतीय शेयर बाजार को प्रोत्साहित करने का प्रयत्न तो किया फिर भी शेयर बाजार का प्रदर्शन अन्य विकसित बाजारों की तुलना में थोड़ा कमजोर ही रहा।

बहरहाल, कोरोना टीके के बनने और बजट के बाजार की जरूरतों पर केंद्रित होने के कारण भारतीय शेयर बाजार में तेजी देखने को मिल रही है। कोरोना महामारी से उबरने के संकेत मिलने के साथ आर्थिक गतिविधियों के शुरू होने और वैश्विक मंदी से बाहर आने के संकेत भी मिल रहे हैं। लिहाजा विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के तेजी से मंदी से बाहर निकलने के अनुमान लगाए जा रहे हैं।

जाहिर है यह अनुमान कई आर्थिक मान्यताओं के आधार पर लगाए गए है,ं जैसे वैश्विक निम्न ब्याज दरें अंतरराष्ट्रीय वित्तीय प्रवाह को विकासशील अर्थव्यवस्थाओं की ओर आकर्षित करेंगी। ऐसे में भारत जैसा गतिशील अर्थव्यवस्था वाला देश निवेश के लिए सर्वाधिक उपयुक्त होगा। अलबत्ता जिस तरह बुनियादी तौर पर इस दौरान भारत सहित पूरी दुनिया का आर्थिक ढांचा चरमराया है, उसमें शेयर बाजार की खुशहाली को सीधे-सीधे संपूर्ण अर्थव्यवस्था की बेहतरी नहीं मानना चाहिए।