उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि नियमित पदोन्नतियों के प्रस्ताव को खारिज करने वाले कर्मचारियों को कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय द्वारा अगस्त 1999 में जारी कार्यालय ज्ञापन के तहत प्रदत्त वित्तीय लाभ पाने का अधिकार नहीं है। शीर्ष अदालत ने उन मामलों पर विचार करते हुए यह बात कही, जिनमें कुछ कर्मचारी नौ अगस्त, 1999 के कार्यालय ज्ञापन के तहत केंद्र सरकार के कर्मचारियों के लिए ‘एश्योर्ड कॅरियर प्रोग्रेशन’ योजना के लाभों का दावा कर रहे हैं।

न्यायमूर्ति आर एस रेड्डी और न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय ने कहा कि उक्त योजना में उन कर्मचारियों के लिए अगले उच्च वेतनमान तक प्रोन्नति का प्रावधान है जिन्हें 12 साल की सेवाओं के बाद पदोन्नति नहीं मिली और दूसरी प्रोन्नति 24 साल की सेवा के बाद स्वीकार्य है।

दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेशों के खिलाफ केंद्र की याचिकाओं पर अपने फैसले में शीर्ष अदालत ने कहा कि अगर नियमित पदोन्नति की पेशकश की जाती है लेकिन कर्मचारी वित्तीय उन्नयन का हकदार बनने से पहले इससे इनकार कर देता है तो वह वित्तीय प्रोन्नति का हकदार केवल इसलिए नहीं होंगे कि उसे ठहराव का सामना करना पड़ा है।

बेंच यह भी बोली कि यह भी देखा जा सकता है कि जब कोई कर्मचारी प्रस्तावित प्रमोशन से इनकार करता है, तो उच्च पद पर काम करने में कठिनाइयां पैदा हो सकती हैं जो प्रशासनिक कठिनाइयों को जन्म देती हैं क्योंकि संबंधित कर्मचारी अक्सर अपने खुद के स्थान पर पदोन्नति से इनकार करते हैं।

टॉप कोर्ट के मुताबिक, “नतीजतन यह घोषित किया जाता है कि जिन कर्मचारियों ने नियमित पदोन्नति के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया है, वे 9 अगस्त, 1999 के कार्यालय ज्ञापन के तहत परिकल्पित वित्तीय उन्नयन लाभों से वंचित हैं।”

बेंच ने कहा कि वरिष्ठ अनुवादक (हिंदी) के रूप में नियुक्त किए गए कर्मचारियों में से दो को नियमित आधार पर अनुवाद अधिकारी (हिंदी) के उच्च पद पर पदोन्नति की पेशकश की गई थी, लेकिन उन्होंने व्यक्तिगत आधार पर प्रस्तावित पदोन्नति से इनकार कर दिया।

इसने फैसले में उल्लेख किया कि नवंबर 1999 में उन्हें एश्योर्ड करियर प्रोग्रेशन योजना के तहत लाभ दिया गया था, पर जब यह पाया गया कि उन्हें गलत तरीके से दिया गया था तो उन्हें 2002 में वापस ले लिया गया था।