मुख्य आर्थिक सलाहकार (सीईए) ने मोदी सरकार के मानदंडों से अलग हट कर भविष्यवाणी की है कि इस पूरे दशक के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था लगभग 6.5 फीसद प्रति वर्ष की दर से बढ़ेगी। वी अनंत नागेश्वरन एक विनम्र व्यक्ति हैं। उन्हें 28 जनवरी, 2022 को सीईए के रूप में नियुक्त किया गया था और उन्होंने अब तक खुद को ज्यादातर सामान्य आदमी बनाए रखा है। कभी-कभार ही कुछ बोला है। हाल के सप्ताहों में, वे अधिक मुखर रहे हैं, मैं इसका स्वागत करता हूं।

पिछले सोमवार को कोच्चि में एक महत्त्वपूर्ण बयान में सीईए ने कहा कि ‘वैश्विक अर्थव्यवस्था में विपरीत परिस्थितियों और अशांति के बावजूद, इस दशक के बाकी बचे वर्षों में भारत की विकास दर 6.5 फीसद रहेगी।… डिजिटल अर्थव्यवस्था और निवेश में भी देश को 0.5 से 1 फीसद की वृद्धि हासिल हो सकती है।…’

जाहिर है, सरकार अब ‘दो अंकों में वृद्धि दर’ की उम्मीद छोड़ चुकी है, जिसकी महामारी से पहले शेखी बघारा करती थी। न ही सरकार 2004 और 2010 (पूर्व सीईए के अनुसार ‘बूम वर्ष’) के बीच विकास की स्वर्णिम अवधि का अनुकरण करेगी। 2022-23 के अंत में स्थिर कीमतों में जीडीपी का आकार 3.75 अरब अमेरिकी डालर रहने का अनुमान लगाया गया है। अगर अर्थव्यवस्था प्रति वर्ष 6.5 फीसद की दर से बढ़ती है, तो 2023-24 से 2025-26 तक 5 अरब अमेरिकी डालर तक पहुंचने का लक्ष्य आगे खिसक कर 2027-28 तक पहुंच जाएगा।

जिम्मेदार कौन?

विकास की यह मामूली दर घरेलू कारकों और बाहरी वातावरण की वजह से है। हम बाहरी कारकों को नियंत्रित नहीं कर सकते, केवल उनका सामना कर सकते हैं। मसलन, रूस-यूक्रेन युद्ध और तेल उत्पादक देशों द्वारा जानबूझ कर तेल उत्पादन में की गई कटौती हमारे नियंत्रण से बाहर है। अगर युद्ध जारी रहा या तेल की कीमतें बढ़ीं, तो हमें धीमी जीडीपी वृद्धि की कीमत चुकानी पड़ेगी। प्रतिकूल प्रभावों के लिए कोई भी सरकार को दोष नहीं दे सकता और न ही देगा।

मगर, विकास दर को प्रभावित करने वाले घरेलू कारकों को संभालना सरकार की जिम्मेदारी है। इन कारकों को संभालने के लिए सरकार को थोड़ा लचीला रुख अपनाना चाहिए। हमने देखा कि नवंबर 2016 में विमुद्रीकरण के कारण भारत की विकास की गति जैसे खो गई थी। 2017-18, 2018-19 और 2019-20 में विकास दर धीमी हो गई थी। फिर, ‘ब्लैक स्वान’ आया, कोविड-19 आया। तब अर्थव्यवस्था व्यावहारिक रूप से बंद ही हो गई थी। लंबे समय तक बंदी, मुफ्त टीकाकरण कार्यक्रम के देरी से शुरू होने, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों को अपर्याप्त वित्तीय सहायता और बहुत गरीबों को नकद हस्तांतरण करने से सरकार के हठीले इनकार ने स्थिति को और खराब कर दिया। हजारों औद्योगिक इकाइयां बंद हो गर्इं और सैकड़ों-हजारों नौकरियां हमेशा के लिए चली गर्इं। लाखों लोगों ने दूर-दराज के राज्यों में अपने घरों की ओर लंबी पैदल यात्रा शुरू की, सैकड़ों रास्ते में ही मर गए। फिर भी, सरकार आपूर्ति पक्ष के उपायों पर कायम रही और मांग को प्रभावित करने वाले कारकों पर ध्यान देने से इनकार कर दिया।

Growth Rate, P. Chidambaram Column.

कुल उपभोग व्यय, निजी और सरकारी, में केवल 6.3 फीसद की वृद्धि हुई। जबकि सकल स्थिर पूंजीगत व्यय में 1.3 फीसद की वृद्धि हुई। पूरे वर्ष के लिए सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर 9.1 फीसद (2021-22 ) से गिरकर 7.2 फीसद (2022-23) हो गई। यह तथ्य है कि पूंजीगत व्यय के बजाय उपभोग, भारत में विकास को गति प्रदान करता है। खपत में सुस्त वृद्धि लोगों के हाथों में कम पैसे या उच्च कीमतों या भविष्य के बारे में अधिक निराशा या उपरोक्त सभी की ओर इशारा करती है।

आर्थिक गतिविधियों (जीवीए), ‘कृषि’ और ‘वित्तीय तथा व्यावसायिक सेवाओं’ को छोड़कर, 2022-23 में हर क्षेत्र की विकास दर 2021-22 की विकास दर से कम थी। 2022-23 में ‘खनन और उत्खनन’ में 4.6 फीसद की वृद्धि हुई (पिछले वर्ष के 7.1 फीसद की तुलना में); ‘विनिर्माण’ में 11.1 फीसद की तुलना में निराशाजनक 1.3 फीसद की वृद्धि हुई; और ‘निर्माण’ में 14.8 फीसद की तुलना में 10.0 फीसद की वृद्धि हुई। तीनों श्रम प्रधान क्षेत्र हैं।

जबकि खुदरा मुद्रास्फीति अप्रैल 2023 में घटकर 4.3 फीसद हो गई है, हम अभी संकट से बाहर नहीं आए हैं। आरबीआइ के गवर्नर शक्तिकांत दास ने आगाह किया है कि ‘हमारे वर्तमान आकलन के अनुसार, अपस्फीति प्रक्रिया धीमी और लंबी होने की संभावना है, मध्यम अवधि में 4 फीसद मुद्रास्फीति लक्ष्य के साथ।’ उन्होंने कहा कि ‘हर साल कार्यबल में भारी वृद्धि को देखते हुए नियामक विकास संबंधी चिंताओं से बेखबर नहीं हो सकते।’ सीएमआइई ने बताया कि अप्रैल 2023 में अखिल भारतीय बेरोजगारी दर 8.11 फीसद थी, जबकि श्रम भागीदारी दर 42 फीसद थी।

6-5-8 लक्षण

एक समय था जब भारत में नीति निर्माताओं ने 5 फीसद की विकास दर और 5 फीसद मुद्रास्फीति ‘स्थिर’ कर दी थी। इसके परिणामस्वरूप लाखों लोग गरीब रह गए और भारत तेजी से चीन और अन्य दक्षिण-पूर्व एशियाई पड़ोसियों से पिछड़ गया। मुझे डर है कि अब ऐसा ही कुछ हो रहा है। वर्तमान नीति निर्माता अमृतकाल की शेखी बघारते हैं, लेकिन अब 8-9 फीसद की वृद्धि की बात नहीं करते हैं। वे 6 फीसद की विकास दर, 5 फीसद महंगाई और 8 फीसद बेरोजगारी से संतुष्ट नजर आ रहे हैं। ये आंकड़े भारत के लिए आपदा की तरह हैं। उनका मतलब बड़े पैमाने पर गरीबी, बढ़ती बेरोजगारी और बढ़ती असमानता है। भारत कई वर्षों तक मध्यम आय वाला देश नहीं बन सकेगा।

हमें अपने लक्ष्यों को फिर से निर्धारित करना चाहिए। हमें तेजी से 8-9 की वृद्धि हासिल करने का लक्ष्य रखना चाहिए और दो अंकों की वृद्धि की आकांक्षा रखनी चाहिए। वे लक्ष्य वर्तमान नीति निर्माताओं और शासकों की क्षमता से परे प्रतीत होते हैं।